रविवार, जून 14, 2009

पालिका बाज़ार की एक शाम

दिल्ली के पालिका बाज़ार का नाम बहुत सुना था पर कभी जाने का पहले मौका नही मिला था. किसी से भी कहो कोई लेकर ही नही जाता था और फिर हम दिल्ली जाते भी 2-3 दिन को थे. बाहर से हमेशा देखा पर कभी अंदर जाने का मौका नही मिला. फिर एक दिन मैं और प्रियंका दोनो मुंबई से दिल्ली आ गये. मैने जेएनयू में दाखिला ले लिया था और उधर प्रियंका को NACO में नौकरी मिल गयी. प्रियंका का ऑफीस जनपथ पर था. एक दिन मैं पहुच गयी उससे मिलने जनपथ. हम दोनो इधर उधर घूम रहे थे अचानक हमे पालिका बाज़ार दिखाई दिया. हम दोनो एक दूसरे को देख कर मुस्कुराए थोड़ी देर इधर उधर घूमे और फिर चल दिए अंदर. सीढ़ियों से नीचे उतरे गोल गोल चक्करो में दुकाने और हम और प्रियंका दोनो उस भूल भुलैया में खोने लगे. उस वक़्त शाम के 6 बज गये तो और अधिकतर दुकाने बंद थी. हाँ सीडी की दुकाने ज़रूर खुली थी और सब दुकानदार ग्राहको को आवाज़ लगा लगा के बुला रहे थे. हमें देखा तो मेडम सीडी ले लो सीडी ले लो. पहले तो हमने सोचा छोड़ो फिर लगा चलो ट्राइ करे. सीडी देखना शुरू किया तो आधा घंटा कब बीता पता नही चला. जिन पुरानी हिन्दी और इंग्लीश मूवीस की सीडी कहीं नही मिलती थी वो भी वहाँ उपलब्ध थी और वो भी ओरिजिनल. हमने खूब सुन रखा था यहाँ बारगिनिंग बहुत होती है तो हमने भी दुकांदार से मोल भाव किया. प्रियंका ने दुकानदार का कार्ड भी लिया की कुछ गड़बड़ हुआ तो हम वापस आएँगे लौटने. इतनी डिसकाउनटेड सीडी पाकर हम बहुत खुश. अब जब बाहर निकलने का रास्ता ढूँढा तो कुछ समझ ना आए सब जगह एक जैसे जीने, दुकाने कहा से बाहर जाए. किसी तरह 15 मिनिट मे हम बाहर निकले. मैं जब घर पहुँची और सीडी दिखा के कहा देखो हम कितनी सस्ती ओरिजिनल सीडी लाए हैं. दादा ने सीडी हमारे हाथ से ली और बोले पालिका गयी थी क्या बेटा. हमने कहा हाँ वही से लाए. दादा हँसे और बोले बुद्धू दुनिया की कौनसी चीज़ है जिसकी ड्यूप्लिकेट पालिका में नही मिलती. अब अगर चल जाए तो अच्छा है वरना कोई नही. हमने सीडी का कवर खोला तो देखा अंदर एक सोनी की ब्लॅंक दिखने वाली सीडी थी. डरते डरते हमने सीडी, प्लेयर मे डाली. सीडी का प्रिंट एकदम ओरिजिनल था पर पाइरेटेड. अब हम जैसे नागरिक भी पाइरेटेड सीडी ख़रीदेंगे तो काम कैसे चलेगा और हमने मन ही मन में तय किया अब पालिका की गलियों मे ना रखेंगे कदम :)

3 टिप्पणियाँ:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

सी डी जब वाकई ओरिजिनल थी और सस्ती भी मिली तो फिर पालिका बाज़ार जाने में क्या बुराई?

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

इस तरह की दुकाने तो खुलती ही ही है सरकारी संरक्षण में, जब खुली है तो लेने में क्‍या हर्ज है। माना गैर कानूनी है, पर संरक्षण तो कानून वाले तो ही दे रहे है।

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

पर जो कदम रखे थे आपने
उनके चिन्‍ह वहां कायम हैं
आज के बाद तो चलेगा
पर आज कैसे मिटेगा।

 

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