शनिवार, अगस्त 22, 2009

उलझे से रिश्ते

क्यूं सब कुछ सही चलते चलते अचानक से रुक जाता है क्यूं मन की उलझने कभी ख़त्म नही होती. अपने ही नही बल्कि अपने आस पास के लोगों को देखूं तो भी लगता है क्यूं कुछ रिश्ते हम सारी उमर निभाने के लिए अभि-शिप्त होते हैं क्यूं हम चाहकर भी उस बंधनो को तोड़ नही पाते जो हमें क़ैद का अहसास दिलाते हैं हम सारी उमर अपने ख़ून से इन रिश्तों को सीचतें हैं पर कभी ये रिश्ते बढ़कर हमारे माथे की छाँव नही बन पाते, ऐसा क्यूं हैं क्यूं हर क़दम पर परीक्षा देनी पड़ती है एक बार नही बार-बार. अपने विश्वास की, अपने प्यार का सबूत देना पड़ता है दिन का कोई पल तो ऐसा आए जब हम अपने मन की बात बिना किसी डर के सामने रख पाए. क्या कभी कोई उस सच तक उस जगह तक पहुँच पाएगा जहाँ क़दम क़दम पर परीक्षा नही देनी पड़ेगी, प्रतीक्षा नही करनी होगी?

मंगलवार, अगस्त 04, 2009

राखी का स्वयंवर


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी


प्रतिद्वन्दिता के चलते हुए आजकल टी वी चेनल्स मे होड़ लगी हुई है की कौन कितने ज़्यादा दर्शकों को अपनी और खीच पाए और टी. आर. पी. चार्ट में उच्च स्थान पाए. ऐसे ही एक ख्याल को ध्यान में रखते हुए राखी का स्वयंवर नाम का धारावाहिक दर्शको के सामने प्रस्तुत किया गया. सीरियल के कुछ एपिसोड मैने भी देखे और देख कर लगा की हमारे आदर्श कितने नीचे गिर चुके हैं की हम इस तरह के धारावाहिक दर्शको के सामने पेश कर रहे हैं मात्र पैसा पाने के उद्देशय से. पूरे धारावाहिक की प्रस्तुति किसी परी कथा के जैसे की गयी और बार बार ये वाक्य भी दोहराया गया की जैसे सीता मैया का स्वयंवर हुआ वैसे ही अब वैसे ही इस युग में राखी का स्वयंवर है. कितनी अजीब बात है हम राखी जैसी लड़की का सीता के साथ तुलना कर रहे हैं. सीता वही स्त्री जिस पर हर स्त्री अभिमान कर सकती है, चाहे कोई युग रहा हो कोई काल. सीता सच्चाई का प्रतीक जिसने किसी संकट , दुख की परिस्थति मे हार नही मानी धेर्य से काम लिया. जिसने अपने आत्म सम्मान के लिए मर्यादा पुरोशोत्तम, सभी के लिए आदरणीय राम के साथ वापस जाने से इनकार कर धरती की गोद मे समाना बेहतर समझा.

एक एक स्वयंवर का उम्मेदवार प्रतियोगिता से बाहर होता गया और राखी को कहते सुना गया की उसको बहुत दुख हो रहा है, दिल टूट रहा है. जब भी ये सब नोटॅंकी मैं देखती मन में सवाल आता राखी मेडम अगर आपका दिल हर प्रत्याशी के जाने से टूट रहा है तो क्या आपका दिल इन सभी दुल्हो पर आ गया है और आप इन सबसे शादी करना चाहती हैं? इतना नाटक, फालतू का भावनात्मक नाटक किस लिए और पीछे से राम का कहना की आप सबका दिल भी राखी के साथ रो रहा है और ऐसा ही कुछ. अरे भाई अगर सब पसंद थे तो कर लेना था ना बहुपति विवाह किसने रोका है, वैसे भी जब आपको किस-किस देवी देवता, नारी की प्रतिनिधि, और भी जाने कैसे कैसे खिताबों से नवाज दिया गया है, सारे देश की, मीडीया की सहानभूति आपके साथ है तो कौन रोकता आपको बहुपति विवाह करने से ? राखी के विवाह के लिए जो सारा टेलीविज़न जगत उठ कर बधाई देने आ पहुचा, कोई रिश्तेदार कोई दोस्त बनकर असल ज़िंदगी में क्या वाकई वो दिल के किसी कोने में इज़्ज़त देते हैं जो ये सब नाटक कर रहे हैं? हल्ला मचता रहा स्वयंवर का और धारावाहिक का अंत कर दिया गया राखी की सगाई पर. क्या राखी और, स्क्रिप्ट लिखने वाले को नही पता था राखी को दूल्हे को समझने का समय चाहिए? दर्शकों को बुद्धू बनाने के लिए हल्दी, मेहंदी जैसी सब रस्मे दिखाई गयी और अंत विवाह की जगह सगाई दिखा दी.

कितनी अजीब विडंबना है हमारे समाज की हम एक और अपने घर की लड़कियों को राखी सावंत जैसी बनने से बचाना चाहते हैं और दूसरी और खुद ही ऐसे धारावाहिक देखते हैं और उसके झूठे आँसू देख रोते हैं. टी. वी. जैसा माध्यम जिसे समाज के विकास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए आज पैसे कमाने के लिए दर्शको को ऐसे धारावाहिक परोस रहा है. मीडीया वाले जो समाज में जागरूकता लाने की भूमिका निभाते है आज अपनी उँची कमाई के लिए जनता के सामने ऐसे धारावाहिकों की अप टू डेट, कवर स्टोरी लेकर हाज़िर रहते हैं. ऐसे में ज़िम्मेदारी किसकी बनती है, अब हम सबको ही तय करना .

एक बार तो मेरा भी दिल किया की क्यूँ मैं राखी जैसी लड़की के बारे में लिख अपना समय बर्बाद कर रही हूँ पर फिर मुझे लगा यदि सब कुछ देखने समझने के बाद भी शुरुआत हम नही करेंगे तो कौन करेगा. सिर्फ़ किसी की आलोचना करने से, कुढने से कुछ नही होगा बल्कि ज़रूरी है की ये बात और लोगो तक पहुचे ताकि अपने अच्छे और भले दोनो का चुनाव हम स्वयं कर पाए ना की कोई और.
 

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