रविवार, मई 16, 2021

कौनसी है वो खुशबु जो तुम्हारे मन को महका जाए ?


तुमको पाकर दुनिया बिलकुल नयी सी हो गयी...ऐसा नहीं तुम पहले बार मिले हो पर इस तरह बस इस बार मिले...अब कोई उलझन मुझे उलझती नहीं अब कोई परेशानी मुझे डरती नहीं...सांस लेती हूँ तो पूर्णत जीवंत होने का अहसास पाती हूँ....लोगों की बातें, लोगों के ताने कुछ मुझ तक पहुच नहीं पाते...जब भी तैयार होने को आईने के सामने खड़ी होती हूँ...सोचती हूँ कौनसा रंग है जो तुम्हे रुचेगा...कौनसी लिपस्टिक है जिसे मेरे होठो पे देख तुम उसको चखने को मचल उठो....कौनसा परफ्यूम है जो तुम्हे बस मेरे होने का अहसास दिलाएगा...कोई ऐसे सुगंध जो बस मेरी ही हो...Bvlgari का rose क्या तुम्हारी साँसों को गुलाबी गुलाबों की खुशबु से महका पायेगा....Elizabeth Arden का मेरा पसंदीदा इत्र तुम्हे सुबह से ताजगी दे पायेगा...Burberry का चन्दन, मोगरे की खुशबु का मेरा नया  इत्र तुम्हारी साँसे सुवासित कर पायेगा ....Dolce & Gabbana का एकदम नया निकला लिमिटेड एडिशन जिसकी खुशबु दावा करती है किसी को भी अपनी और खीचने की तुम्हे खीच पाएगी...Marc Jacobs का Daisy क्या तुम्हे जादुई दुनिया में ले जा पायेगा....Lancôme का attraction क्या तुमको मेरी और आकर्षित रख पायेगा...Chanel का एक शताब्दी से इत्र की दुनिया में राज कर रहा perfume क्या तुम्हारे दिल को भी छु पायेगा...Givenchy का अब तक का सबसे सेंसुअल perfume क्या तुम्हे भी इंसानी दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जा पायेगा....बस यही सोच कर मैं और भी जाने कितने इत्र लगाती हूँ पर सबको हटा देती हूँ...कोई खुशबू नहीं जो मेरे मन को छु पाए...आँख बंद कर मैं एक गहरी सांस लेती हूँ तो मेरा मन कहता है तुम्हारी सांस को महका पाए,तुम्हे हर पल बस मेरे होने का अहसास दिलाये वो मेरी अपनी खुशबू ही हो सकती है...इस खुशबु को कोई भी bottled नहीं कर सकता सिर्फ तुम उसको महसूस कर सकते हो...तुम्हे चाहिए भी तो सब जो सिर्फ तुम्हारा हो तुम्हारे लिए हो...तो बस एक मेरी ही खुशबू ही जो बस तुम्हारी है.

रविवार, अप्रैल 25, 2021

दोस्ती की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती :)

यूँ तो दोस्तों के साथ बिताये सभी पल सुन्दर ही लगते हैं पर फिर भी कुछ ऐसी यादें होती हैं जो हमेशा मन के करीब रहती हैं, चाहे अनचाहे आपको याद दिलाती है की कोई हर पल आपके साथ है ख़ुशी हो या दुःख. लोग कई बार मुझसे पूछते हैं मेरे सबसे अच्छे दोस्त का नाम...मैं जब भी कुछ दोस्तों का नाम लेती हूँ वो कहते हैं नहीं एक. पर जाने क्यूँ कभी मैं किसी एक दोस्त का नाम नहीं ले पाती. ज़िन्दगी में कुछ दोस्त ऐसे हैं जिन्होंने मेरा मन छुआ बस यही सब मेरी दोस्ती की लिस्ट में है. अब उनको ना तो मैं कोई नंबर दे सकती हूँ ना एक दूसरे से उनकी तुलना कर सकती हूँ. ये दोस्त ऐसे हैं जिन्हें मैं कभी भी किसी भी पल फ़ोन कर सकती हूँ बात कर सकती हूँ. इन दोस्तों से जुडी कुछ ऐसी यादें है जो कभी धूमिल नहीं होती हमेशा एकदम ताजा रहती है सुबह के सूरज के जैसे. कई दिन से मैं सोच रही थी अपने ब्लॉग पर कुछ लिखू अपनी यादों के बारे में. अभी हाल ही में मेरी एक प्यारी सी दोस्त प्रियंका का जन्मदिन आया तो मैंने सोचा शुरुआत प्रियंका से ही की जाए...मेरे दोस्तों की कोई नंबर लिस्ट नहीं है...पर शुरुआत के लिए मैंने किसी का जन्मदिन चुना और सबसे पहले प्रियंका का जन्मदिन आया. प्रियंका मेरी बहुत प्यारी सी दोस्त...जिसके साथ बीता हर पल आज भी मेरी आँखों के सामने बिलकुल जीवंत है. उससे मुलाकात कुछ अलग ही ढंग से हुई, मैं TISS में पढ़ती थी और प्रियंका वहां दाखिला लेने के लिए आयी थी. तभी अचानक से उससे मुलाकात हुई. थोड़ी बात हुई उसने कहा अगर मुझे यहाँ दाखिला मिल जाता है मैं आपसे मिलने आऊँगी. और अचानक एकदिन वो लड़की मेरे कमरे के बाहर खड़ी होती है और कहती है मैं आ गयी. बस यही शुरुआत थी एक आजीवन चलनेवाली दोस्ती की...कुछ ही दिनों में ऐसा हो गया की हम दोनों दिन में एक दूसरे से कई बार मिलते..प्रियंका रोज दोपहर खाना खाने के बाद मेरे रूम में आ जाती और हम गप्पें मरते रहते...कभी जब दिन में नहीं आ पाती फिल्ड वर्क के लिए जाना होता तब रात को १-२ बजे मेरा डोर बजता दीदी खोलो और उसके बाद हमारी बातों का जो सिलसिला शुरू होता उसमे विराम लगना असम्भव ही होता...कभी कभी जब मैं कमरे में नहीं होती और दवाजा खुला होता तब प्रियंका मेरा बिस्तर लगाना, मेज़ ठीक करना, कपडे तह करना सब कर चुकी होती...मैं आके कहती ये सब क्यूँ किया तो कहती अब आप मजे से मुझसे बातें करो...कोई और काम नहीं! ऐसी ही और भी बहुत यादें हैं पर एक बात मेरे मन के सबसे करीब है....सब कहते थे हास्टल में जो सामने होता है बस वही आप घर जाओ दूर रहो सब भूल जाते हैं....पर मैंने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया....एक बार में अपने फिल्ड वर्क के लिए घर आयी हुई थी और मैं पांच महीने बाद वापस TISS गयी...मेरा आना अचानक हुआ और प्रियंका का फ़ोन नहीं लगा....जब मैं हास्टल पहुची वो क्लास में जा चुकी थी. दोपहर के खान एके बाद मैं हॉल के बाहर दोस्तों से बातें कर रही थी...अचानक से किसी ने बहुत जोर से चिल्लाया और बोला दी....और तेजी सी भागती प्रियंका मेरे गले लग गयो और बहुत देर तक एकदम खामोश रही और फिर बोली आपने कितने दिन लगाये.... डायनिंग हॉल के अन्दर बाहर सब हम दोनों को ही देख रहे थे...क्यूंकि प्रियंका सामान्यता बहुत ही शांत रहती है वो कभी publicly loud नहीं होती है और उसका ऐसे चीखना और भागकर गले लगना उसके सामान्य व्यवहार से अलग था. आज भी वो पल मेरी अनखो के सामने जीवंत है. हमारी दोस्ती में बहुत उतरा चढाव आये, झगड़ा भी हुआ पर तुरंत फिर से बात शुरू. अभी मैं और प्रियंका हज़ारों मील दूर रहते हैं फिर भी हम एक दूसरे के बिलकुल करीब हैं मन से...अब भी प्रियंका वैसे ही जिदें करती हैं और मैं उसको पहले डांटती हूँ, पर उसके मस्का लगाने से मान भी जाती हूँ. पिया (प्रियंका के लिए दिया मेरा नाम ) i really miss u a lot! लोग झूठ कहते हैं out of sight out of mind....मुझे तो लगता है दोस्ती की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती :)

शनिवार, नवंबर 14, 2020

कुछ यादें इश्क की गलियों से

क्या अब भी कोई आता है तुमसे मिलने ऑफिस से आते वक़्त, क्या ट्रेन में बैठते वक़्त अब भी क्या तुम्हे मेरे आने का इंतज़ार रहता है क्या कभी तुम भूल जाते हो कि अब मैं उस शहर में नहीं हूँ और तुम्हे रहती है जल्दी घर पहुचने की, क्या अब भी तुम घर पहुच कर खोल कर बैठ जाते हो लैपटॉप और चलता है शायरी, अंतराक्षी और बातों का दौर, क्या अब भी तुम्हे हर पल मिलते है कुछ sms और missed कॉल सर्दी कि रातों में हाथों में हाथ डाले सड़क पर घूमते लोगों को देख मेरी याद आती है? क्या अब भी तुम्हे डर रहता है वक़्त बेवक्त किसी के घर आने का, क्या अब भी अँधेरी रातों में बिस्तर पर तुम्हारे हाथ मुझे ढूंढते हैं, क्या अब भी सुबह कि पहली किरण और ऑफिस जाना तुम्हे उतना ही बोझिल लगता है क्या अब भी तुम हर दिन को शुक्रवार और शनिवार में बदलना चाहते हो ताकि तुम्हे ऑफिस न जाना पड़े, जब बरफ कि झड़ी लगी है सारे शहर में क्या कोई तुम्हे अकेला न छोड़ने का प्रण कर तुम्हारे पास आता है क्या अब भी तुम्हे ढूंढने पड़ते है लिपस्टिक के रंग, और चुनना पड़ता है कपड़ो के रंग ? चित्र साभार गूगल

सोमवार, अक्तूबर 26, 2020

कशमकश

कभी कभी मुझे लगता है की शायद इंसान से दुष्ट कोई नहीं है. अपने आस पास जिसे भी देखू सब अपने ऊपर एक आवरण चढ़ाये हैं. कितना ही लगे की ये इंसान बाकी सबसे अलग है पर असलियत में ऐसा नहीं है शायद एक दो ही ऐसे लोग हो जो भीड़ से हटकर हैं या जिनमे कुछ अलग है. एक सबसे बड़ी फितरत इंसान की वो बोरे बहुत जल्दी हो जाते हैं. जब भी कोई रिश्ता शुरू होता है वो बहुत सुन्दर लगता है, एकदम नया नया सा. धीरे धीरे उससे लोग बोर होने लगते हैं और फिर दुसरे रिश्ते उनकी ज़िन्दगी में जगह ले लेते हैं. जो लोग कभी उनकी ज़िन्दगी का एक हिस्सा हिस्सा थे उन्हें ऐसे काटकर अलग कर देते है की वो कभी था ही नहीं . मैं पहले मानती थी की ऐसा नहीं होता अगर आपने किसी की ज़िन्दगी को उसके साथ जीया है या किसी ने हर पर आपकी ज़िन्दगी को महसूस किया है वो लोग कभी दूर नहीं हो सकते वहां कभी भी कुछ बीच नहीं आ सकता. अगर आपके बीच टकराव है तो उससे बहार आने का रास्ता धुंध लिया जाये तो रिश्ते मजबूत होते हैं. पर शायद यही गलती है जिसे सभी करते हैं. प्राय सभी की ज़िन्दगी में रेप्लेस्मेंट्स होते हैं, जैसे ही उन्हें दूसरा मिले वो पहले को हटा दूसरे को जगह दे देते हैं या जगह खाली होते ही भर देते हैं. आपका किसी के साथ बीताया समय आपको याद ही नहीं रहता अपने नए रिश्तों, ज़िन्दगी में. जिस इंसान से आप रोज मिलने के बाद भी फ़ोन पे, नेट पे बात करते हो अब आपको उसकी फ़ोन उठाने की भी जरुरत महसूस नहीं होती. जिस इंसान ने आपके हर अच्छे बुरे में आपका साथ दिया हो वो अब ज़िन्दगी का कहीं हिस्सा नहीं क्यूंकि आप अपनी नयी ज़िन्दगी में बहुत व्यस्त हैं. खून के रिश्ते और वैवाहिक रिश्तों में पालन करने की अनिवार्यता सामान्यता बहुत ज्यादा होती है,आप अगर दूर जाना भी चाहे तो काफी मुश्किल है पर इसके अलावा जो रिश्ते है उनमे कहीं कोई अनिवार्यता साथ निभाने की पाबन्दी नहीं होती. मुझे लगता था ये रिश्ते बहुत खूबसूरत और अनूठे होते हैं क्यूंकि ये हमें हमारे खून से नहीं मन से सीचने होते हैं. यहाँ अगर कुछ कडवाहट हुई तो निभाने की अनिवार्यता न होने से साथ कभी भी छूट सकता है. इसलिए रिश्ते के दोनों पक्षों को बहुत विश्वास और प्यार से एस रिश्ते को पुष्पित पल्लवित करना पड़ता है. आज लगतI है मेरा सोचना सही है या नहीं ?

शनिवार, मार्च 14, 2015

ये आदतें भी अजीब होती है

ये आदतें भी अजीब होती है भूले से भी नहीं भूलती...हर पल हर लम्हा बिना चाहे बिना सोचे बस कुछ कर बैठती हूँ....सोचती हूँ अब तुमको मैं किसी बहाने याद नहीं करुँगी.....पर अजीब है जब देखो तुम तैयार रहते हो मेरी हर बात में शामिल होने के लिए.....जब सुबह कॉलेज जाने के लिए आईने के सामने खड़े हो मैं तैयार होने लगती हूँ जाने कहाँ तुम्हारी जुगनू सी आँखे चमक पड़ती हैं....और मैं भी चुपके से शीशे में देखती हूँ क्या मैंने सही बिंदी लगायी है..कही मेरा कजरा ज्यादा तो नहीं है......ये ड्रेस मुझ पर जँच रहा है की नहीं.......और जब तक तुम्हारी आँखों में संतुष्टि नहीं दिखती लगता है मैं तैयार हो ही नहीं पाती हूँ.....कितनी ही बार मैं ऊँचे हील के सेंडिल पहन दरवाजे तक आ जाती हूँ अचानक लगता है तुमने टोका की कुछ और पहनो न, जूते! कहीं तुम इनमे गिर न जाओ और मैं वापस मुड़कर स्पोर्ट्स शु पहन बाहर निकलती हूँ...जब कभी क्लास के लिए देर हो जाती है और कई बार भागते भागते मेरे कदम अपने आप रुक जाते हैं और मैं आराम से चलने लगती हूँ...लगता है तुमने पीछे से आवाज देकर कहा अरे धीरे चलो तुम अभी गिर जाओगी.....जब कभी पढ़ाते पढ़ाते मैं अपने स्टुडेंट्स के साथ थोड़ी गंभीर हो जाती हूँ अचानक याद आता है तुम हमेशा कहते थे तुम किसे पढ़ोगी अभी तो खुद ही बच्ची हो और मैं मन ही मन मुस्कुरा उठती हूँ...जब कभी मन करता है किसी का सर फोड़ दूं, डांट दूं मैं कुछ कहने वाली ही होती हूँ तभी तुम मुस्कुराते दिखते हो और कहते हो तुम हंसती हुई ज्यादा अच्छी लगती हो और मैं बेबस हो शांत हो जाती हूँ..... ऐसे ही और भी न जाने कितने पल है जब तुम अपने आप मेरी ज़िन्दगी में शामिल हो जाते हो....कहीं से भी किसी भी झिरी से ना चाहते हुए भी तुम मेरे मन और मस्तिष्क में चले आते हो.....और हंसकर कहते हो भाग सको तो भाग लो पर तुम कहीं नहीं जा पाओगी ........और मुझे छेड़ते हुए गुनगुनाते हो..... तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई :) सुरभि ... चित्र साभार गूगल

बुधवार, अप्रैल 25, 2012

यूँ भी कोई रूठता है ?


तुम्हारा ऐसे चले जाना
बिलकुल नहीं अच्छा लगा मुझे
एक मेसेज कर दिया की
बस अब मुझसे बात ना करना
हमारा रिश्ता खतम
तुम्ही कहो जान
ऐसे भला कोई रूठकर जाता है
जीवन भर के लियें ?

नहीं देती मैं दुहाई
तुम्हारे वायदों की
ना ही देती मैं दुहाई तुम बिन
जीकर भी ना जी पाने की
गर रूठो तो मुझे
मनाने का मौका भी दो,
मैं गलती करूँ कोई तो
सजा देने का अधिकार भी तुम रखो

नहीं कोई गलती ऐसी जहाँ में
जो तोड़ दे इश्क की डोर
नहीं कोई सजा बनी इस जहाँ में
की मेरा ईश्वर ही मुझे छोड़ चल दे !


गुरुवार, अप्रैल 19, 2012

:)



मुझमे अजब सी बैचैन छाई है
शायद ये हवा तुझे छूकर आयी है :)
 

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