
ये आदतें भी अजीब होती है भूले से भी नहीं भूलती...हर पल हर लम्हा बिना चाहे बिना सोचे बस कुछ कर बैठती हूँ....सोचती हूँ अब तुमको मैं किसी बहाने याद नहीं करुँगी.....पर अजीब है जब देखो तुम तैयार रहते हो मेरी हर बात में शामिल होने के लिए.....जब सुबह कॉलेज जाने के लिए आईने के सामने खड़े हो मैं तैयार होने लगती हूँ जाने कहाँ तुम्हारी जुगनू सी आँखे चमक पड़ती हैं....और मैं भी चुपके से शीशे में देखती हूँ क्या मैंने सही बिंदी लगायी है..कही मेरा कजरा ज्यादा तो नहीं है......ये ड्रेस मुझ पर जँच रहा है की नहीं.......और जब तक तुम्हारी आँखों में संतुष्टि नहीं दिखती लगता है मैं तैयार हो ही नहीं पाती हूँ.....कितनी ही बार मैं ऊँचे हील के सेंडिल पहन दरवाजे तक आ जाती हूँ अचानक लगता है तुमने टोका की कुछ और पहनो न, जूते! कहीं तुम इनमे गिर न जाओ और मैं वापस मुड़कर स्पोर्ट्स शु पहन बाहर निकलती हूँ...जब कभी क्लास के लिए देर हो जाती है और कई बार भागते भागते मेरे कदम अपने आप रुक जाते हैं और मैं आराम से चलने लगती हूँ...लगता है तुमने पीछे से आवाज देकर कहा अरे धीरे चलो तुम अभी गिर जाओगी.....जब कभी पढ़ाते पढ़ाते मैं अपने स्टुडेंट्स के साथ थोड़ी गंभीर हो जाती हूँ अचानक याद आता है तुम हमेशा कहते थे तुम किसे पढ़ोगी अभी तो खुद ही बच्ची हो और मैं मन ही मन मुस्कुरा उठती हूँ...जब कभी मन करता है किसी का सर फोड़ दूं, डांट दूं मैं कुछ कहने वाली ही होती हूँ तभी तुम मुस्कुराते दिखते हो और कहते हो तुम हंसती हुई ज्यादा अच्छी लगती हो और मैं बेबस हो शांत हो जाती हूँ.....
ऐसे ही और भी न जाने कितने पल है जब तुम अपने आप मेरी ज़िन्दगी में शामिल हो जाते हो....कहीं से भी किसी भी झिरी से ना चाहते हुए भी तुम मेरे मन और मस्तिष्क में चले आते हो.....और हंसकर कहते हो भाग सको तो भाग लो पर तुम कहीं नहीं जा पाओगी ........और मुझे छेड़ते हुए गुनगुनाते हो..... तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई :)
सुरभि ...
चित्र साभार गूगल