आज बहुत कुछ लिखने का मन है..पर मेरे विचारों मेरी भावनाओ को शब्दों में पिरो पाना बहुत मुश्किल हो रहा है......बार बार कुछ लिखती हूँ कुछ मिटाती हूँ...अचानक से याद आती है मुझे हरिवंशराय बच्चनजी की वो कविता जो मैंने न जाने कितने बरसों पहले पढ़ी थी पर आज पहली बार मैंने खुद को इस कविता को जीते हुए पाया.
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।
फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में
और चारों ओर दुनिया सो रही थी।
तारिकाऐं ही गगन की जानती हैं
जो दशा दिल की तुम्हारे हो रही थी।
मैं तुम्हारे पास होकर दूर तुमसे
अधजगा सा और अधसोया हुआ सा।
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।
एक बिजली छू गई सहसा जगा मैं
कृष्णपक्षी चाँद निकला था गगन में।
इस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू
बह रहे थे इस नयन से उस नयन में।
मैं लगा दूँ आग इस संसार में
है प्यार जिसमें इस तरह असमर्थ कातर।
जानती हो उस समय क्या कर गुज़रने
के लिए था कर दिया तैयार तुमने!
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।
प्रात ही की ओर को है रात चलती
औ उजाले में अंधेरा डूब जाता।
मंच ही पूरा बदलता कौन ऐसी
खूबियों के साथ परदे को उठाता।
एक चेहरा सा लगा तुमने लिया था
और मैंने था उतारा एक चेहरा।
वो निशा का स्वप्न मेरा था कि अपने
पर ग़ज़ब का था किया अधिकार तुमने।
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।
और उतने फ़ासले पर आज तक
सौ यत्न करके भी न आये फिर कभी हम।
फिर न आया वक्त वैसा
फिर न मौका उस तरह का
फिर न लौटा चाँद निर्मम।
और अपनी वेदना मैं क्या बताऊँ।
क्या नहीं ये पंक्तियाँ खुद बोलती हैं?
बुझ नहीं पाया अभी तक उस समय जो
रख दिया था हाथ पर अंगार तुमने।
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।
9 टिप्पणियाँ:
बच्चन जी की कई कविताएं है.....हर मोड़ पर सटीक.....
sandarbh koi hoga, khyal kuchh hoga, kavita kisi ki sahi, per baat jo bhi hai, hai badi pyari.
PAWAN nISHANT
http;/yameradarrlautega.blogspot.com
Ye kavita mujhe bhi bahut pasand hai...phir se padhane ke liye aapko dil se dhanywaad!
Holi ki bahut bahut shubhkaamanaae!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
बहुत आभार बच्चन जी की यह रचना पढ़वाने के लिए.
प्यार की एक कोमलतम अनुभूति को बयां कर पाना हरिवंश राय
जी की ही लेखनी का प्रताप है और आपके मन की अनुभूति को भी श्रेय है जिसने कविमन को
समझा -शुक्रिया !
nice
ओर अमिताभ की आवाज में सुनिए इसे एच एम् वी वालो ने सीडी निकाली है बरसो पहले .....तो ओर दुगुना इफेक्ट देती है
कुछ लिखा न जा सके, लिख कर बार बार मिटा दिया जाय तो समझिये गहन हो गयी है अनुभूति !
बच्चन जी की इस कविता का आभार ।
अरे अभी इसी कविता के दो लाइन आपके एक पोस्ट पे हमने दिए थे ;) क्या बात है, अपनी भी फेवरिट है ये :) हमने भी अपने ब्लॉग पे लगाया था एक बार ये कविता :)
एक टिप्पणी भेजें