मंगलवार, दिसंबर 20, 2011

एक दोपहर कांफ्रेस के खाने के नाम



समाजशास्त्र का राष्ट्रीय इस बार जे.न.यु हमारे ही विश्वविद्यालय में था....कांफ्रेंस में दोपहर के खाने की कतार देखकर हम तो डर ही गए और स्कुल की कैंटीन का रास्ता नापने लगे अचानक राह में एक दोस्त मिल गयी बोली चल यार खाना खाते हैं मैंने कहा हाँ चलो खाते हैं कैंटीन में आज तुम्हे बटाटा कान्धा परांठा खिलते है मुंबई छाप. सहेली बोली तेरा सर फिर गया है चल चुपचाप कन्वेंशन सेंटर वहीँ खाना है आज चोथा दिन है और तुम रोज रात को खाती नहीं यहाँ और दिन में कैंटीन... आज तो खाना ही पड़ेगा और हम साथ हैं चल आजा. अब क्या करते...चल दिए कन्वेंशन सेंटर की तरफ!

वहां तो पूरा एक मेला लगा था रोज सुनते थे कोई ३००० लोगों ने हिस्सा लिया है पर यहाँ तो उससे दुगुने लोग थे. पर ऋतू की समझदारी के चलते हम भी एक लाइन का हिस्सा हो लिए. अचानक ऋतू की चिल्लाहट सुनी बोली हाय राम मेरे मुह को, हाथो को क्या हो गया ये लाल लाल दाने....हमने कहा अरे हाँ तुझे तो तेज धुप से अलेर्जी है ना...अब हास्टल जाके बरफ लगाना... ऊपर प्रचंड सूरज सर पर था और आज तुने सनस्क्रीन भी नहीं लगा के आये हाय अल्लाह ऋतू की बच्ची तेरा क्या होगा...हमने कहा अपना दुपट्टा ढक लो तो उसने तुनक कर कहा वह जी खुद ऐसे ही घुमो हमें जोकर बना दो...हमने कहा अरे ऐसा नहीं है देखो हम भी कर रहे हैं ना और दुपट्टे का घूँघट कर लिया..जे.न.यु.के होने का एक फायदा है अब हमको किसी के कुछ कहने से फरक नहीं पड़ता...जैसे अच्छा लगे पहनो रहो....अब कोई कुछ भी सोचे हमारी बला से....पर ऋतू कहाँ चैन लेने देगी हमें मैडम का फरमान आया सुन अपना झोला हमें दे हमें करें लेना है...हमने कहा ले लो भाई पूरा हम तो पहले ही थके हैं तुम्ही पकड़ो इस बोझे को और ढूढ़ लो क्रीम क्राम जो चाहिए. ऋतू हमरे झोले को टटोलती रही और बोली अरे इसमें वो तुम्हारा "इम्पोर्टेड अमेरिका वाला" धूप से बचने वाला क्रीम कहाँ गया ? एक पल को लगा उसने हमारी दुखती राग पर हाथ रख दिया हमने कहा अरे यार वो तो हम जब यहीं रहते थे तब रखते थे अब आज हम अपना रोज का झोला तो लाये नहीं उसमे ही घर पे रह गया होगा. तू भी ना एकदम बेवकूफ है रोज जब सेंटर आएगी तब लाती है आज ये खुले मैदान में सनस्क्रीन नहीं लायी...हमारा पूरा ध्यान इधर कतार पर था आगे खिसके वरना हमारा तो खाने के बाद का सेशन रह जायेगा...पर ये लाइन थी की हिलने का नाम ही नहीं ले रही थी...इतने में हमारा ध्यान गया की कुछ लोग बार बार हमारी लाइन के पास आते हैं और अटक जाते हैं जिससे हम एक जगह अटके थे...एक दो लोग आगे बढे तो हमने देखा वो पानी पीने वाले थे..पर सबा परेशान और लगे गलियां जे. न.यु . को देने ..हमने देखा नल में पानी नहीं था और बिसलरी का कैन लगभग खतम था पर उसके नीचे एक पूरा भरा कैन रखा था...लोग भाषण खूब कर रहे थे पर कोई पानी के लिए कुछ नहीं कर रहा था...सब बस भाषण कर रहे थे और लाइन में लगे लोगों का ध्यान सिर्फ खाने तक पहुचना था...अब हम पानी के पास तक पहुच चुके थे हमने ऋतू को कहा तुम हमारा झोला पकडे रहो अभी तो बहुत देर में नम्बर आएगा और हमने पानी की कैन को टेढ़ा कर दिया और लोग पानी पीने लगे ....कुछ ने हमें दुआ दी और कुछ ने कहा कितना खराब इन्तेजाम है पानी तक नहीं मिल रहा इस कांफ्रेंस में नॉन- व्हेज खाना तो दूर...ये है जे.न. यु. की असलियत भला हो इस लड़की का वरना हम गर्मी में प्यासे मर रहे हैं...अब तक ऊपर रखी कैन का पानी खतम हो चूका था हमने नीचे से कैन उठाया और उसको लगाया और मुस्कुरा के कहा हाँ भाई यही है यहाँ की असलियत हम यहीं के पढ़े हैं और हमको यही सीखाया है की कोई काम छोटा नहीं होता ...लक्ष्य पर ध्यान रखो पर किसी के ऊपर पैर रखके आगे ना बढ़ो....तभी एक लड़का बोला अरे पहले मुझे पानी दो मुझे पेपर पढना है रिसर्च पेपर इन सब बातों में लगूंगा तो क्या खाक पेपर पढूंगा मैडम मैंने खुद जाके काम किया है फिल्ड में....दो चार लोगों ने उसको नजर उठाके देखा...और हमने एक पानी का ग्लास उसकी और बढ़ाते हुए कहा...श्रीमान लगता है आप रिसर्च की कक्षा का पहला सबक ही भूल गए...जब फिल्ड में जाए तो अपनी आँख कान सब खुला रखे...जो बातें बातचीत के दोरान नहीं पता चलती वो अवलोकन से पता चलती है...ज़िन्दगी भी तो एक रिसर्च है जहाँ हर मोड़ पे नए टोपिक हैं...इतने में फिर ऋतू ने हाथ खीचा और बोली हो गया ना पानी लगाया ना अब चल लाइन कितनी आगे बढ़ गयी...हम थोडा ही आगे बढे की लाइन फिर अटक गयी...ऋतू को एक फ़ोन आ गया वो बोली हम आते हैं और दोस्त आये हैं जगह रोके रखना...नम्बर आये तो प्लेट ले लेना...

हमारे आगे एक श्रीमान एकदम सूट बूट में राजा बाबू बनके तैयार थे हमें देखकर मुस्कुराए इतने में पीछे खड़े लडको ने उनसे हाय हल्लो की...और कहाँ हम आपसे मिले थे आपका नम्बर दे दे वगेरह वगेरह ....जैसे ही वो लड़के निबटे बात चीत करके ये श्रीमान जी अंग्रेजी में बोले हम अलीगढ विश्वविद्यालय से आये हैं अभी देखा हमने कैसे आपने पाने की समस्या निबटाई.. हमने हल्का सा मुस्कुरा कर कहा समस्या जैसा कुछ नहीं था...अब श्रीमान जी हमारी जनम कुंडली बनाने की फिराक में थे की इतने में ऋतू ने आके बचा लिया ..उसके हाथ में आइस क्रीम थी बोली जल्दी खा ले बहुत गर्मी है ...हमने उसकी और कृतज्ञता से देखा और इशारे में कहा शुक्रिया हमें बचने के लिए ...पर ये श्रीमान जी एक पल को रुके फिर हमसे बोले आज धूप बहुत तेज है...हम चुप ही रहे की अब कुछ बोला तो ये हमारी सात जन्मो की कुंडली बना ही लेगा...दो मिनट की विराम के बाद महानुभाव फिर बोले आज जरा गर्मी तेज ही है ...और हम दोनों की और देख के मुस्कुरा कर बोले और खासकर लड़कियों के लिए ...हमने देखा ऋतू बस आँखों से बरसती आग को अपनी जबान पर लाने ही वाली थी की हमने उसका हाथ पकड़ा और और पिछले आधे घंटे से ये श्रीमान जो पीछे वाले लडको पर रोब जमाना चाहते थे की देखो लड़की वो भी जे.न.यु की पढने वाली को हम कैसा शीशे में उतारते है.... को देखते हुए मुस्कुरा कर कहा...अरे अभी तक तो हमें पता ही नहीं था हम तो कुछ और ही समझ बैठे थे....अच्छा हुआ आपने अपना परिचय हमें खुद दे दिया...... की आप लड़की है :D

शुक्रवार, अक्तूबर 28, 2011

मन की भाषा



आज पिया ने कहा मैं तुम्हे ७२ founts में i love you लिख के भेजूं....पर अजब उलझन में हूँ ये करूँ की ना करूँ ?
तुम्हारे मन तक पहुचे वो शब्द उकेरने की कला मैं भूल सी बैठी हूँ की तुम ही उस लिपि को बाचने की कला खो बैठे हो.
लिपि छोड़ो क्या तुम्हे याद है हमारी अपनी भाषा...कभी बातों में, कभी गीतों में, कभी आँखों में, कभी इशारों में, कभी नज़मों में कभी सड़क किनारे दुकानों पर छपे विज्ञापनों में ...ना कोई शब्द, ना कोई लिपि अब मुझे याद है जो तुम्हारे मन को छु सके...सिर्फ कुछ अहसास हैं...जो बहुत मुश्किल से शब्दों में ढल गए हैं...तुम पढ़ सको तो पढ़ना


बिन कहे मेरी आँखों के भाव
तुम्हारे दिल में उतर जाते थे.
कभी एक शरमाई सी गले मिली शाम
सब बातें कर जाती थी
एक आलिंगन आँगन में झिझका सा
ज़िन्दगी सुकून से भर जाता था
जाते जाते मुड़कर देखने के बहाने
हम कुछ पल साथ फिर जी लेते थे
जाने से ज्यादा उस हिलते हाथ में
फिर आने के वायदे होते थे


एक बार फिर आओ जाना
कौन जाने इस बार हम फिर कोई नयी भाषा तलाशें !!!

रविवार, अक्तूबर 23, 2011

:)


प्यार के दौर में
छूट जायेगा साथ मेरा
अपनी ही आत्मा से
ऐसा पता ना था
जब सोचा फुरसत में बैठकर
ये ब्रह्म ज्ञान पाया
मेरी आत्मा मेरे ही पास रहती
तो वो तुममे एकाकार कैसे होती?

गुरुवार, सितंबर 29, 2011

तुम


खोजता था मैं गुम हुए अहसासों को
तुम आयी मुझसे सेंकडो नए जज़्बात भर गयी
किया था जब अलग मेरे वृक्ष ने मुझको
तुम मुझे रोंप, नयी कोपलें खिलने वादा दे गयी
अँधेरे को मान बैठा था मैं नियति अपनी
तुम अपने जीवन का उजियारा मुझे दे गयी
रंग सारे छोड़ मुझे आसमान में जा बसे तब
तुम मुझे इन्दधनुष के सारे रंगों से परिचित करा गयी
नेराश्य ने जब मुझमे घर किया
तुम उम्मीदों के हज़ारों दीप प्रज्वल्लित कर गयी
डरने लगा था हवा के झोंको से भी जब मैं
तुम मुझमे तूफानों में अटल रहने का साहस भर गयी
दुनिया मुझे जब परदे के पीछे रखती थी
तुम मुझमें रंगमच का कलाकार बनने का होंसला भर गयी
मेरे जीवन की रिक्तता को
तुम पूर्णता से भरती रही
घुटती थी जब साँसे मेरी
तुम मुझमे प्राण फूंक गयी !

मंगलवार, अगस्त 23, 2011

:)



जब मुस्कुरा कर देखा तुमने
ज़िन्दगी खूबसूरत सी लगने लगी
ये मुस्कुराहटें यूँ ही आपस में बदलती रहें
तो ये जनम मुकम्मल हो जाए :)

शुक्रवार, अप्रैल 22, 2011

गुरु शिष्य सम्बन्ध


अभी रविवार को मैं दिल्ली गयी हुई थी अचानक एक फ़ोन आया
मैडम आप कहाँ हो?
मैंने कहा दिल्ली, क्यूँ क्या हुआ....
आप कब आओगे आपसे मिलना था....

जब वापस घर आयी फिर कॉल आया...मैडम आओ कालेज आ रहे हो..मैंने कहा हाँ अभी आ रही हूँ...ऐसा क्या हुआ की इतने फ़ोन कर रहे हो तुम लोग...कालेज पहुचती हूँ तो देखती हूँ मेरे स्टुडेंट्स को कुछ आवेदन पत्र वगेरह को सत्यापित करना था और जिनकी अंतिम तिथि आज की ही थी....मैंने सत्यापित करके कहा अरे किसी और से करा लेते ना आज इतनी भीड़ होगी फार्म जमा करने का अंतिम दिन है...पहले भी कितनी बार कहा है किसी और टीचर से मेरा नाम लेके करा लिया करो.....
मैडम हमें आपसे ही करना है...क्यूँकी आपके सत्यापित करने से हमें आपका आशीर्वाद भी मिल जाता है और ये गुड लक जैसे काम करता है इसलियें हम आपके ही पास आते हैं.

ये सुनकर मैं एकदम दंग रह गयी....समझ नहीं आया क्या प्रतिक्रिया दूं... आज भी विद्यार्थियों के लिए शिक्षको की शुभकामनाएं इतना मायने रखती है....मैं नहीं जानती उनके इस विश्वास, श्रद्धा के लिए क्या कहूँ....ये अहसास एकदम निशब्द है...जिसको मैं कभी नहीं भूल पाऊँगी...ये अहसास मेरा विश्वास गहरा करने में की मैंने सही राह चुनी है और मुझे मेरे विद्यार्थियों को और अच्छी शिक्षा देने के लिए हमेशा प्रेरणा देता रहेगा ! मैं ज्यादा नहीं अगर कुछ लोगों के जीवन को दिशा देने में ही सक्षम रहूँ तो ये मेरी शिक्षा, मेरी परवरिश की सबसे बड़ी सार्थकता साबित होगी!

मंगलवार, फ़रवरी 01, 2011

मन का उजाला



ज़िन्दगी में कितने ही अँधेरे आयें
पर मेरे मन का उजाला
हर अँधेरे को खिलखिलाती सुबह बनाने ,
और हर रात को जगमगाने को तैयार है :)
 

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