शुक्रवार, नवंबर 05, 2010

निफ्ट उर्फ दर्ज़िगिरी का स्कूल





उफ्फ 8 बज गये 10 बजे निफ्ट पहुचना है और ये जे. एन. यू. में ऑटो नही दिख रहा और ये बस को भी आज ही नखरे करने हैं. यहाँ तो सर्दी की सुबह 8 बजे भी ऐसे लगता है जैसे आधी रात हो. और आज प्रियंका की एंट्रेन्स परीक्षा है क्या करूँ मैं...किसी तरह हम गोदावरी हॉस्टिल से झुंझलाते बाहर मेन गेट पर आते हैं. 2-4 ऑटो खड़े हैं.
भैया जी निफ्ट चलोगे, गुलमोहर पार्क.

मेडम जी ये नीफेट क्या है? और गुलमोहर पार्क?

अरे भैया वही खेल गाँव के पास, हौज़ खास में.

मेडम वो तो समझ आया चलो आप दूसरा ऑटो कर लो मुझे नही पता.

दूसरा ऑटो भैया ने भी ये कहा........... इनको नही पता भगवान क्या करूँ?

अचानक मेरे मुँह से निकला अरे भैया वही जहाँ दर्ज़िगिरी सीखते है, उसका बड़ा सा संस्थान, वही स्कूल जैसा....वही जहाँ सिलाई-कटाई-डिज़ाइन बनाना सीखते हैं...जहाँ बाहर चाय कि थडियों पर लड़के लड़कियों रात दिन बैठे रहते हैं

ओह तो वहाँ जाना है आपको, पर आप तो जी जे.एन.यु की लगती हो वहाँ कहाँ?

अरे भैया मीटर डाउन करो और चलो.

मेडम 150 लगेंगे .......भैया 9 कि. मि के इतने रुपये मेरे पास नही है 75 मे ले चलो ना वैसे तो 60 बनते हैं.

अरेssssssss मेडम आप दर्ज़िगिरी सीखने के साल के 30000-40000 रुपाए लगाओ और हम बेचारो को ऑटो के इतने पैसे भी नही दे सकते...आप तो जी शाही लोग हो.

हम ऑटो में बैठे 125 रूपीए तय करके.

बैठते ही ऑटो वाले ने कहा मेडम कितने साल का कोर्स है?

मैने कहा भैया जी 3 और 2 साल के.

ऑटोवाला बोला मेडम मैं एक अच्छे दर्जी को जानता हूँ, जमना पार 3 महीने मे टकाटक दर्ज़िगिरी आ जाएगी बस 1500 दे देना. आपको पता नही है म ब्लॉक, ग्रेटर कैलाश में माल भेजता है वो.

मैं प्रियंका को देख मुस्कुराती हूँ और कहती हूँ चलो किसी ने तो हम बेवकूफो को बुद्धि दी :)
 

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