रविवार, मार्च 21, 2010


प्रकृति की तरह बसंत, शीत, वर्षा और गर्मी के अनुरूप अपने आप को बदल लो ....न दर्द उठेगा, न कसक. हमारा मन एक जीवित नदी है...ऊपर से सूखी रेत और भीतर से कभी न सूखने वाला निर्झर. शायद यहीं से इंसान को जीने का रस मिलता है.

बुधवार, मार्च 10, 2010



ज़िन्दगी में अगर कोई रिश्ता छूटे तो ऐसे मोड़ पर छूटे की अगर फिर कभी मिलें तो मिलने की ख़ुशी चाहे न हो पर मिलने का दुःख भी न हो...
 

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