रविवार, अप्रैल 25, 2021

दोस्ती की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती :)

यूँ तो दोस्तों के साथ बिताये सभी पल सुन्दर ही लगते हैं पर फिर भी कुछ ऐसी यादें होती हैं जो हमेशा मन के करीब रहती हैं, चाहे अनचाहे आपको याद दिलाती है की कोई हर पल आपके साथ है ख़ुशी हो या दुःख. लोग कई बार मुझसे पूछते हैं मेरे सबसे अच्छे दोस्त का नाम...मैं जब भी कुछ दोस्तों का नाम लेती हूँ वो कहते हैं नहीं एक. पर जाने क्यूँ कभी मैं किसी एक दोस्त का नाम नहीं ले पाती. ज़िन्दगी में कुछ दोस्त ऐसे हैं जिन्होंने मेरा मन छुआ बस यही सब मेरी दोस्ती की लिस्ट में है. अब उनको ना तो मैं कोई नंबर दे सकती हूँ ना एक दूसरे से उनकी तुलना कर सकती हूँ. ये दोस्त ऐसे हैं जिन्हें मैं कभी भी किसी भी पल फ़ोन कर सकती हूँ बात कर सकती हूँ. इन दोस्तों से जुडी कुछ ऐसी यादें है जो कभी धूमिल नहीं होती हमेशा एकदम ताजा रहती है सुबह के सूरज के जैसे. कई दिन से मैं सोच रही थी अपने ब्लॉग पर कुछ लिखू अपनी यादों के बारे में. अभी हाल ही में मेरी एक प्यारी सी दोस्त प्रियंका का जन्मदिन आया तो मैंने सोचा शुरुआत प्रियंका से ही की जाए...मेरे दोस्तों की कोई नंबर लिस्ट नहीं है...पर शुरुआत के लिए मैंने किसी का जन्मदिन चुना और सबसे पहले प्रियंका का जन्मदिन आया. प्रियंका मेरी बहुत प्यारी सी दोस्त...जिसके साथ बीता हर पल आज भी मेरी आँखों के सामने बिलकुल जीवंत है. उससे मुलाकात कुछ अलग ही ढंग से हुई, मैं TISS में पढ़ती थी और प्रियंका वहां दाखिला लेने के लिए आयी थी. तभी अचानक से उससे मुलाकात हुई. थोड़ी बात हुई उसने कहा अगर मुझे यहाँ दाखिला मिल जाता है मैं आपसे मिलने आऊँगी. और अचानक एकदिन वो लड़की मेरे कमरे के बाहर खड़ी होती है और कहती है मैं आ गयी. बस यही शुरुआत थी एक आजीवन चलनेवाली दोस्ती की...कुछ ही दिनों में ऐसा हो गया की हम दोनों दिन में एक दूसरे से कई बार मिलते..प्रियंका रोज दोपहर खाना खाने के बाद मेरे रूम में आ जाती और हम गप्पें मरते रहते...कभी जब दिन में नहीं आ पाती फिल्ड वर्क के लिए जाना होता तब रात को १-२ बजे मेरा डोर बजता दीदी खोलो और उसके बाद हमारी बातों का जो सिलसिला शुरू होता उसमे विराम लगना असम्भव ही होता...कभी कभी जब मैं कमरे में नहीं होती और दवाजा खुला होता तब प्रियंका मेरा बिस्तर लगाना, मेज़ ठीक करना, कपडे तह करना सब कर चुकी होती...मैं आके कहती ये सब क्यूँ किया तो कहती अब आप मजे से मुझसे बातें करो...कोई और काम नहीं! ऐसी ही और भी बहुत यादें हैं पर एक बात मेरे मन के सबसे करीब है....सब कहते थे हास्टल में जो सामने होता है बस वही आप घर जाओ दूर रहो सब भूल जाते हैं....पर मैंने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया....एक बार में अपने फिल्ड वर्क के लिए घर आयी हुई थी और मैं पांच महीने बाद वापस TISS गयी...मेरा आना अचानक हुआ और प्रियंका का फ़ोन नहीं लगा....जब मैं हास्टल पहुची वो क्लास में जा चुकी थी. दोपहर के खान एके बाद मैं हॉल के बाहर दोस्तों से बातें कर रही थी...अचानक से किसी ने बहुत जोर से चिल्लाया और बोला दी....और तेजी सी भागती प्रियंका मेरे गले लग गयो और बहुत देर तक एकदम खामोश रही और फिर बोली आपने कितने दिन लगाये.... डायनिंग हॉल के अन्दर बाहर सब हम दोनों को ही देख रहे थे...क्यूंकि प्रियंका सामान्यता बहुत ही शांत रहती है वो कभी publicly loud नहीं होती है और उसका ऐसे चीखना और भागकर गले लगना उसके सामान्य व्यवहार से अलग था. आज भी वो पल मेरी अनखो के सामने जीवंत है. हमारी दोस्ती में बहुत उतरा चढाव आये, झगड़ा भी हुआ पर तुरंत फिर से बात शुरू. अभी मैं और प्रियंका हज़ारों मील दूर रहते हैं फिर भी हम एक दूसरे के बिलकुल करीब हैं मन से...अब भी प्रियंका वैसे ही जिदें करती हैं और मैं उसको पहले डांटती हूँ, पर उसके मस्का लगाने से मान भी जाती हूँ. पिया (प्रियंका के लिए दिया मेरा नाम ) i really miss u a lot! लोग झूठ कहते हैं out of sight out of mind....मुझे तो लगता है दोस्ती की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती :)
 

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