बुधवार, जुलाई 29, 2009

फ़ुर्सत के पल, भूली बातों के नाम

कभी तो हम फिर से बैठकर फ़ुर्सत मे बातें करे. जब तुम ये ना कहो फटाफट बोलो क्या बात है, ना मैं कहूँ जल्दी बोलो कॉलेज जाना है. बस बातें शुरू हो और बिना किसी अवरोध के एक बात दूसरी का सिरा पकड़े और ये सिलसिला चलता चले. कभी चाय की चुस्कियों के साथ तो कभी पेप्सी के केन के साथ. तुम शुरू तो करो अपने ऑफीस से पर खोते जाओ अपने कॉलेज, स्कूल की बातों मे. तुम बयान करो अपने मॅनेजर के खड़ूसपने को और मैं भी देखने लगूँ उसमे अपने पीएचडी के सूपरवाइज़र को. जब करेंगे बातें हम अपने सहकर्मियों की तो कहीं से निकल ही आएँगे कुछ भूले बिसरे यार दोस्त पुरानी तस्वीरों. कभी हम करने लगे बातें अपने स्कूल के मनपसंद टीचर की तो कभी पी टी और फिज़िक्स के उस डरावने टीचर की. कभी याद करे केमिस्ट्री की नाज़ुक सी मेडम की तो कभी गणित के टीचर के डंडे को. कभी याद करे दीदी की गुल्लक से चुराए 1रूपीए को तो कभी स्कूल के लंच पीरियड मे बचाए पैसो से खरीदे जन्मदिन के तोह्फो की. गुब्बारेवाले की आवाज़ नही सुनती अब यहाँ कभी शोक मनाए इस बात का तो कभी मुस्कुराए भरी दुपहरी में आइस्क्रीम वाले की घंटी सुन नंगे पैर दौड़ कर आइस्क्रीम लाने को याद कर. मिलकर तय करें मंदिर में दोनो वक़्त की आरती मे जाके प्रसाद पाने की खुशी ज़्यादा थी या उसके आँगन मे खेलने की. बस कहें हम अपने अपने दिल की, ना ज़्यादा दिमाग़ लगाए ना परखने बैठे कुछ भी.

सोमवार, जुलाई 20, 2009

तुम एक दुनिया खूबसूरत सी

तुम्हे देखती हूँ तो लगता है सारी दुनिया मेरे पास सिमट आई है, हर ओर कोयले जीवन का मधुर संगीत सुना रही है. ज़िंदगी के जो अंधेरे कोने शेष है वहाँ जुग्नुओ की रोशनी बिखर गयी है, तपते हुए रेगिस्तान मे बालू के कणओ पर बारिश की बूंदे मोती जैसे गिर रही है, जाड़ो की सुबह मे ठिठुरती धरती को सूरज की गरमाहट का साथ मिल गया हो. हर इंसान खुशी मे वैसे ही नाच रहा है जैसा मयूर बारिश मे मन्त्र मुग्ध हो नाचता है. तुम्हारे साथ देखी एक सुबह का उजाला आजीवन की रोशनी भर गया, जिस केक्टस को बरसों से फूल खिलने का इंतज़ार था आज वो भी गुलाबी सफेद नाज़ुक फूल को कांटो के बीच खिला देख इतरा रहा है. जब तुम साथ होते हो तो मैं उतना ही आश्वस्त महसूस करती हूँ जितना एक बच्चा अपनी माँ की गोद मे महसूस करता है या पिता की अंगुली थामे.

रविवार, जुलाई 19, 2009

दिल ढूंढता है फिर वही...

लंदन मे रहकर मुझे कई बार अपने देश की बहुत याद आती है. और वो भी ख़ासकर बारिश के दिनो में. यहाँ पहले ही ठंड होती है उपर से ठंडी हवा और बारिश. चलिए बारिश तो बहुत सुहाना और लुभावना मौसम हैं मुझे याद है जब मैं घर पर या हॉस्टिल मे रहती थी बारिश होते ही हम लोग बाहर भीगने को निकल जाते थे. सड़क के किनारे मिलने वाली चाय, गरमागरम पकोडे (भजिया) खाते. कई बार स्कूल, कॉलेज से आते वक़्त साइकल पर भुट्टा खाते हुए घर लौटते थे. हिन्दुस्तान मे कहीं भी सड़क के पास चाय और पकोडे की थडी मिल जाती है और आप आराम से चाय की चुस्कियाँ लेते हुए बारिश की फुहारों का आनंद उठा सकते हैं. पर यहाँ ना तो चाय की दुकान है ना ही वो मज़ा. अगर आपको चाय चाहिए तो स्टारबक्स, कोस्टा-कॉफी जैसी दुकानो मे जाइए और काली चाय पी लीजिए, और अगर आपको दूध वाली चाय पीनी है तो अलग से मिला लीजिए. और पहली चुस्की लेते ही मन करता है बस हो गया चलो यहाँ से. एक अच्छी चाय या कॉफी पीने की चाह मे मैने 30-40 बार अलग अलग दुकानो को आजमाया पर कहीं भी अच्छी तो दूर ठीक चाय-कॉफी तक नही मिली. जब घर पर थे माँ बारिश मे कुछ गरमागरम बना कर खिलाती थी तो सब साथ बैठकर मज़ा करते थे पर यहाँ घर आकर अकेले अपने लिए ना तो कुछ बनाने का मन करता है ना ही कोई साथ में बारिश देखने वाला ही होता है. भले ही यहाँ आप बारिश मे कीचड़ मे गंदे ना हो पर जो मज़ा हिन्दुस्तान मे बारिश मे सड़क के गड्ढो मे छप छप कर चलने मे है, पूरे कपड़े गंदे करके आने में, सड़क किनारे चाय पीने, भुट्टा या भजिया खाने में, घरवालो या दोस्तो के साथ बारिश में भीगने मे, गाने गाने में वो कहीं नही है.

शुक्रवार, जुलाई 17, 2009

एक गलती सज़ा उमर भर की

चीन सरकार की नीति के अनुसार एक परिवार एक बच्चे का नारा है जो की वहाँ हो रही जनसख्या वृद्धि को रोकने का एक उपाय है. उपाय तक तो बात सही थी पर हाल ही में एक खबर के अनुसार जिन माता-पिता के एक से अधिक बच्चे हैं उन्हे जुर्माना भरना पड़ता है. माता-पिता को बच्चे के पैदा होने से 20 दिन से 3 महीने के अंदर एस जुर्माने की राशि भरनी पड़ती है. जो माता-पिता यह जुर्माना नही भर पाते हैं उनके बच्चो को संरक्षण में ले लिया जाता है. इन बच्चो को अनाथालय में रखा जाता है और वहाँ से बच्चो को गोद लेने वालों को बेच दिया जाता है. अधिकतर बच्चो को अमेरिका, बेल्जियम जैसे देशों मे गोद लिया जाता है.

उल्लेखनीय बात यह है की जुर्माने की राशि चीन की प्रति व्यक्ति की औसत आय से लगभग दो गुना ज़्यादा है ऐसे में माता-पिता किस तरह से इस ज़ुर्माने को भर पाएँगे? बढ़ती हुई जनसंख्या रोकने के लिए कुछ नियम, क़ानून बनाना सही है पर अगर माता-पिता ऐसे मे एक से अधिक बच्चे को जनम देने की गलती करते है तो सज़ा इन मासूम बच्चों को क्यूँ दी जाए? सरकार और प्रशासन की दृष्टि से वो माता पिता को सज़ा दे रहे हैं क़ानून को तोड़ने के लिए परंतु असली सज़ा बच्चों को मिल रही है. एक बच्चा अपने समाज, परिवार से दूर किसी और के पास रहने जाता है या फिर अपना बचपन अनाथालय मे गुजरने पर मजबूर है. इसकी क्या गारंटी है की जिस देश में बच्चा गोद गया है वहाँ उसे माता-पिता और परिवार का प्यार मिलेगा, उनके साथ कोई अत्याचार, उनका कोई शोषण नही होगा? क्या ऐसे बच्चो का भविष्य अंधकार पूर्ण नही हो जाएगा? क्या ऐसे बच्चो का सामान्य समाजीकरण हो पाएगा? बच्चो को अनाथालय भेजने की बजाय क्या माता-पिता के विरुद्ध कोई कठोर कदम नही उठाया जाना चाहिए?
 

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