शुक्रवार, दिसंबर 11, 2009

तुम्हारे पसंदीदा डायलोग


तुम जब भी मिलती हो नयी सी लगती हो
ये मेरा भ्रम है की तुम्हारा जादू ?

तुम्हारी आँखे हैं की आइना,
जैसे ही देखो दिल का हाल पता चल जाता है.

अरे कहना था न मुझे तुमने क्यूँ तकलीफ की,
हुज़ूर की खिदमत में नाचीज़ हमेशा हाज़िर है.

तुम हंसती हो तो लगता है
जैसे मंदिर में घंटिया बज रही है.

तुम ऐसे चुप मत बैठा करो
मुझे लगता है सारा जहान नाराज़ है.

तुम भी न इतनी झल्ली क्यूँ हो, देना था न जवाब
अच्छे से एकदम करारा तुम्हारे गुस्से जैसा .

मंगलवार, दिसंबर 01, 2009

शिक्षा के बदलते प्रतिमान

कॉलेज शिक्षा विभाग में आये मुझे अभी महिना भर ही हुआ है और मैं अपने आपको इस माहौल के अनुकूल नहीं बना पा रही हूँ. महाविद्यालयों में विद्यार्थी पंजीकरण काफी ऊँचा है पर कहीं कक्षा नहीं लगती और कहीं विद्यार्थी नहीं आते. अध्यापक गण भी विद्यार्थियों को पढ़ने की बजे अपने व्यक्तिगत कार्यों में व्यस्त हैं. इन दिनों महाविद्यालयों में रुकने की अवधि पहले की बनिस्पत २ घन्टे घटा कर ५ घंटे कर दी गयी है और साथ ही छठा वेतनमान भी लागू कर दिया गया है. इसके बावजूद शिक्षक महाविद्यालय में रहने से कतराते हैं और जो एक दो घंटा वहां रहते हैं उनमे भी कक्षाएं न के बराबर ले रहे हैं. मैं समझ नहीं पाती शिक्षक जो समाज का भविष्य निर्माता है वही अगर इस प्रकार की प्रक्रियाओं में लिप्त होंगे तो आने वाले समय में क्या होगा. दूसरी और विद्यार्थी है जिन्होंने छात्रवृति पाने के लिए महाविद्यालय में दाखिला तो करवा लिया है, पर कक्षों में आने की फुर्सत नहीं है. महाविद्यालय के विकास को दर्शाने के लिए कंप्यूटर सेंटर, नए नए कोर्से खोल लिए गए हैं, विद्यार्थियों के सर्वांगीन विकास हेतु विभिन्न कार्यकर्म चलाये जा रहे हैं . पर ये सब भी विद्यार्थियों को महाविद्यालय में लाने में सहायक सिद्ध नहीं हो रहे है.

अभी बहुत कुछ है लिखने के लिए पर सुबह उठ कर मुझे महाविद्यालय जाना है और कक्षा भी लेनी है. मैं उम्मीद करती हूँ की मेरे ब्लॉग को पढने वाले पाठक मुझे कुछ प्रोत्साहित करंगे अपने विचारों के साथ ताकि मैं इस विषय में लिखने की कोशिश को बरक़रार रखु.

नोट
मेरी कक्षा के कुछ विद्यार्थी नियमित रूप से आकर मुझे कृतार्थ कर रहे हैं, मैं उनकी आभारी हूँ की मुझे महाविद्यालय में खाली या इधर उधर चाय पीते हुए अपना समय व्यतीत नहीं करना पड़ता :)
 

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