सोमवार, अगस्त 28, 2006

ज़िंदगी की किताब पर उभरते नये पन्ने

ज़िंदगी की किताब पर कुछ नये पन्ने रंगने लगे है कुछ नये से चेहरे आकर लेने लगे है मन मैं नयी उमंगें मचलने लगी हैं ये ख्वाब है या हक़ीकत सपनो की दुनिया सच ना होकर भी जाने क्यूं इतनी क़रीब लगती है लगता है सिर्फ़ एक क़दम का फ़ासला है हाथ करूंगी तो हक़ीकत हो जाएगी. मेरा बात बात पर मुस्कुरा पड़ना, हर पल कोई गीत गुनगुना क्या मेरी ज़िंदगी में किसी के आने की ओर ईशारा करता है ज़िंदगी की किताब मैं जो नयी इबरतें लिखी जा रही है क्या मैं उसे पढ़ सकूंगी? पहली बार मेरा मन किसी के लिए इस तरह बेकाबू हो रहा है जिस और मैं जाना नही चाहती खीचा चला जा रहा है पर फिर भी कहीं कुछ है जो मुझे रोकना चाहता है इस सबसे, मुझे कहता है इतनी रफ़्तार से तो घड़ी के काँटे भी नही बदलते जितनी से तुम उस ओर खीची जा रही हो. उसने ना कुछ कहा-ना कुछ सुना, और कौन जाने उनके मन मैं कुछ है भी या नही, कहीं ये उँची उड़ाने मेरे मन की ही तो नही? अगर है भी तो मेरा मन उड़ना चाहता है पर दिमाग़ कहता है रुक जाओ. दिल और दिमाग़ की इस कशमकश मे, मैं उलझती जा रही हूँ. हर पल फ़ोन की घंटी बजने का इंतज़ार, किसी की चिट्ठि आई है देखने के लिए मेरा बार बार कँपुटर को खोलना क्या मेरे पागलपन का परिचायक नही? क्या करूँ समझ नही आता, ज़िंदगी को यूँ ही चलने दूं या रोक दूं अपने आप.

मंगलवार, अगस्त 01, 2006

मुंबई मेरी जान

बचपन से ही tv पर अख़बारों मैं बंबई को देखती थी. उँची-उँची इमारतें, भागती हुई सी ज़िंदगी, ख़ुद में ही खोए हुए लोग. एक ऐसा शहर जहाँ ज़िंदगी कभी नही सोती थी. कभी परियों का शहर कभी सितारों की नगरी. जाने क्या कशे-श थी इसमे जो इसका जादू किसी के दिल से नही जाता था. सपने मैं भी नही सोचा था एक दिन मैं इस शहर मैं पढ़ने आओुंगी. पर जो सपना मैने नही देखा था वो हक़ीकत हो चुका था. कभी ये शहर मुझे अनजान लगता था, कभी भूल भुलैया जैसे, जिसमे मैं अपने आपको गुम पाती थी. ज़िंदगी की रफ़्तार भी इतनी तेज़ की घड़ी के काँटे भी पीछे रह जाए. इतनी भीड़, इतने लोग होने के बाद भी मैं इस शहर मैं अपने आपको तन्हा पाती थी. पैर धीरे-धीरे मैं भी उस भीड़ मैं शामिल होती गई जो लोग इससे प्यार करते थे. अपनी पहचान बनाने को जूझते लोगों मैं अब मैं भी हूँ, उदासी भरे दीनो मैं समंदर की लहरों में खोना भी मैने सीख लिया है चलते जाना ही जीवन का नियम है और यही नियम है मुंबई का भी! और अब मेरी ज़िंदगी का भी.
 

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