बुधवार, जून 10, 2009

जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा

ओफ्फो जब देखो तुम खाना ही बनाती रहती हो, कुछ और भी आता है की नहीं? हम्म इतने प्यार से तुम्हारे आने से पहले तुम्हारे लिए खाना तैयार रखा ताकि आने के बाद मैं काम में न जुटी रहूँ और तब भी तुम खुश नहीं. पतिदेव बताइए मैं क्या करूँ? अरे भाई कुछ और करो, बाहर जाओ कुछ सीखो, कोई नौकरी करो इतनी पढ़ी लिखी हो क्या चूल्‍हे चोके में ज़िंदगी झोक रही हो. अब वो तो हो नही सकता , आपको याद है आपकी शादी के वक़्त इश्तहार दिया था चाहिए " एक सुंदर, सुशील, उच्च शिक्षा प्राप्त घरेलू, गृहकार्यों में दक्ष कन्या". और जब आप मुझसे मिलने पहली बार आए थे और मैने कहा था क्या वाकई आपको घरेलू कन्या चाहिए और आपने कितना इठला कर कहा था " हाँ भाई हमे तो ऐसी लड़की चाहिए जो बहुत पढ़ी लिखी हो ताकि मेरे आनेवाली संतति को अच्छे से पढ़ा लिखा सके और हर समय का खाना अपने हाथ से बना मुझे खिलाए". उस समय मैने आपको समझाने की कोशिश भी की थी पर आपने मुझसे वायदा लिया था की मैं कभी नौकरी नही करूँगी, हमेशा घर ही संभालूंगी. आप अपना वायदा भूल सकते हैं पर मैं..........कभी नही. जाते जाते गुलज़ार साहेब की पंक्तिया याद आ जाती है "वक़्त रहता नही कभी एक सा, इसकी फ़ितरत भी आदमी सी है"

5 टिप्पणियाँ:

श्यामल सुमन ने कहा…

लिखा पोस्ट जो आपने बातें कुछ हैं खास।
रचना भी अच्छी लगी शीर्षक करें तलाश।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Udan Tashtari ने कहा…

सही है..वादा लिया है तो झेलने दो . :)

बसंत आर्य ने कहा…

वादा निभाउंगी ये दावा पसन्द आया

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

आधुनिक जीवन की विसंगति को आपने सीधे, सरल शब्दों में प्रभावशाली तरीके से अभिव्यक्ति दी है । कथ्य, शिल्प, भाव और विचार सभी प्रभावित करते हैं। सूक्ष्म संवेदना को आपने बडी बारीकी से रेखांकित किया है । बधाई ।

http://www.ashokvichar.blogspot.com

M Verma ने कहा…

vaade ko vaada hee rahne do.
achchhi rachana

 

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