आज अचानक से पुराने फोटो देखते मन उदासी से भर गया. मेरा एक पुराना क्लासमेट याद आ गया जिसने 12वी मे फेल होने के कारण आत्महत्या कर ली थी. एक बहुत ही हँसमुख लड़का, जिसे देखकर लगता ही नही था उसको पढ़ाई की कोई चिंता है या वो ऐसा कदम उठा सकता है. उसकी मौत के बाद पता चला की उसके माता-पिता बहुत नामी डॉक्टर थे और उनकी यही आस थी की बड़ा होकर बेटा डॉक्टर बने और उनका अस्पताल चलाए. यह लड़का बचपन से ही बहुत लाड़ प्यार मे पला था, एकदम मनमौजी था. पर फेल होने के बाद हुए मानसिक तनाव के कारण उसने आत्महत्या कर ली. जान उस लड़के की गयी पर सामाजिक संवेदना के भागी उसके माता-पिता बने. और अब माँ बाप को भी लग रहा था फेल ही तो हुआ तो उसने ऐसा कदम क्यू उठाया. आज जब बेटा नही रहा तो सब शोक मना रहे हैं पर उसने जिस मानसिक स्थिति मे आत्महत्या जैसा कदम उठाया उसका ज़िम्मेवार कौन है?
हर माँ बाप बच्चे को सिर्फ प्रथम आते देखना चाहते ही और बच्चों को बचपन से ही ताकीद किया जाने लगता है की उसको हर हालत में प्रथम आना है. ऐसे में बच्चे जब फेल होते हैं या कम नंबर आते हैं तो माँ बाप एवं समाज से मिलने वाले तिरस्कार झिड़की के डर से उल्टे सीधे कदम उठा बैठते हैं. बच्चे के ऊपर दवाबों के चलते बच्चे गलत राह पर जाते हैं ,कम सोकर पढने में लगे रह अपना स्वास्थ्य खराब करते हैं. और अगर इस सबके बावजूद अच्छे अंक ना आए, अच्छी जगह दाखिला ना हो या बच्चे फेल हो तो उन पर गुस्से की गाज़ गिरती है. और वही पल होता है जब बच्चा अपने आपको बहुत अकेला पता है और इस तनाव के चलते अपनी ज़िंदगी ही ख़त्म करने का फेसला ले लेता है.
शिक्षा का काम इंसान को जीवन जीने का सलीका सीखना है ना की ज़िंदगी से ही हार जाना. मेरे विचार में बच्चो की इस हालत का जिम्मेदार सिर्फ माता पिता न होकर हमारा समाज, आज की शिक्षा पद्विती हैं. जहाँ नम्बर पाने के गुर सीखाये जाते हैं और जो बच्चा पढाई में अच्छा हो उनका सम्मान सबसे ज्यादा होता हैं. कम नम्बर आने पर न केवल माता पिता बल्कि शिक्षकों द्वारा भी दंड दिया जाता हैं ऐसे में अगर बच्चे आत्महत्या जैसे कदम उठाये तो इस सबका ज़िम्मेवार कौन है? वो बालक जिसने अपनी ज़िंदगी ख़त्म कर ली, उसके माता पिता या फिर आप मैं और हम जैसों से मिलकर बना समाज?
आज दुनिया में इतने नए नए व्यवसाय आ गए हैं, की माँ बाप को बच्चे के अंको की चिंता छोड़ उसके सर्वांगीण विकास की और ध्यान देना चाहिए. आज सभी को समझने की जरुरत है की बच्चे की योग्यता उसके लाये नंबर नहीं बल्कि उसका एक काबिल, जिम्मेदार इंसान बनने से है. बच्चो को उनकी इच्छा अनुसार विषय लेने देने चाहिए और व्यवसाय का चुनाव भी उन पर छोड़ देना चाहिए. हर माता पिता के बच्चो से उम्मीद होती है सपने होते हैं पर बच्चो के सपनो को पूरा करने का काम भी उनकी का है. क्यूँ उनकी आँखो के अधूरे सपने, उनके बच्चो को अपने सपने अधूरे छोड़ पूरे करने पड़े?
मंगलवार, जून 16, 2009
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4 टिप्पणियाँ:
सहमत हूँ आपकी सोच से.
जिंदगी की परीक्षा में हर इंसान कामयाब हो, हमारी यही दुआ है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
जानती हैं सुरभि जी..पता नहीं क्यूँ बच्चों की पढाई और उससे ज्यादा उनके परिणाम को लेकर एक अजीब सा दह्शानुमा माहौल पैदा कर दिया जाता है..इसके लिए समाज ..माँ..बाप ..खुद ही जिम्मेदार होते हैं..अफ़सोस की ये घटनाएं रुक नहीं रही हैं..
pahle kabhi gyaan prapt hota thaa..aajkal padhhai he,,,gyaan knhi chhitak gayaa he, aour yahi karan he ki soch me bojh aour nirasha ne apna dab dabaa banaa liya he//
aapki soch sahee soch he./
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