मंगलवार, अप्रैल 10, 2012

शब्द


शब्दों में ढालनें से,
अपने ज़ज्बातों को डरती थी मैं,
अपने कहीं तज ना दे,
जब मिली तुमसे,
की पहली बार कोशिश,
शब्दों को गुनने की,
पर जब तुम मुझे तज चल दिए,
मेरा शब्दों से साथ सदा के लिए छूट गया !

5 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

naya blog aacha hai sorry hindi shabdkosh kaam hai mere paas but bahut badhiya hai naya look,
Manish

सुरभि ने कहा…

शुक्रिया मनीष...जितने शब्दों में कहा वो ही बहुत ज्यादा है...तुम्हे ये नया रूप पसंद आया...शुक्रिया...ब्लॉग का ये कलेवर...मुझे मेरे व्यक्तित्व की झलक देता सा लगता है...

M VERMA ने कहा…

जज्बात शब्दों के मोहताज़ नहीं ...
सुन्दर शब्दों में जज़्बात को ढाला

Rakesh Kumar ने कहा…

साथ कहाँ छूटा जी.
शब्द तो अखंड हैं,अनंत हैं.
सुन्दर भावमय प्रस्तुति के लिए आभार.

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह! बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! ख़ूबसूरत प्रस्तुती!

 

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