बुधवार, अप्रैल 25, 2012

यूँ भी कोई रूठता है ?


तुम्हारा ऐसे चले जाना
बिलकुल नहीं अच्छा लगा मुझे
एक मेसेज कर दिया की
बस अब मुझसे बात ना करना
हमारा रिश्ता खतम
तुम्ही कहो जान
ऐसे भला कोई रूठकर जाता है
जीवन भर के लियें ?

नहीं देती मैं दुहाई
तुम्हारे वायदों की
ना ही देती मैं दुहाई तुम बिन
जीकर भी ना जी पाने की
गर रूठो तो मुझे
मनाने का मौका भी दो,
मैं गलती करूँ कोई तो
सजा देने का अधिकार भी तुम रखो

नहीं कोई गलती ऐसी जहाँ में
जो तोड़ दे इश्क की डोर
नहीं कोई सजा बनी इस जहाँ में
की मेरा ईश्वर ही मुझे छोड़ चल दे !


3 टिप्पणियाँ:

M VERMA ने कहा…

तुम्ही कहो जान
ऐसे भला कोई रूठकर जाता है
रूठे तो रूठे पर कुछ पल के लिए... जीवन भर के लिए नहीं
बेहतरीन काव्याभिव्यक्ति ...
बहुत खूब

M VERMA ने कहा…

अगली पोस्ट का इन्तेजार कर रहा हूँ

सुरभि ने कहा…

@ verma jee एक नयी पोस्ट चिट्ठे पर पोस्ट की है :)

 

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