सब कहते हैं मैं रिश्ते बनाना बहुत अच्छे से जानती हूँ, मैं रिश्तों को निभाने की बजाय जीने समझ यक़ीन करती हूँ. जिस रिश्ते की शुरुआत ख़ूबसूरती से हुई, जिसका आधार सच्चाई और विश्वास है वो रिश्ता आजीवन ख़ूबसूरत ही रहेगा. चंद लम्हों की कड़वाहट मेरे रिश्तों को कड़वा नही कर सकती हैं. कभी कभी कुछ ऐसे पल आते हैं जब लगता है सब कुछ खो गया है पर क्या वो अपनापान भी खो सकता है जो कभी उस रिश्ते मैं महसूस किया था? ऐसा ही मेरे साथ हुआ कुछ पलों के लिए लगा मेरे नीचे की ज़मीन और माथे के उपर का आसमान ही मुझसे छीन गया है पर जब सोचने बैठी ख़ुद को टटोला तो पाया कहीं उस रिश्ते की टूटती साँसों मे धड़कन बाक़ी है, जिसे मैं जीवन का अंधेरा समझ रही हूँ वहाँ रोशनी की किरण आज भी शेष है, दिल और दिमाग़ मे जो चल रहा है उसको रोकना मुश्किल है बहुत.....पर जब कहीं इस उलझनों के, अकेलेपन के दौर (जिसका साझी कोई और है) के साथ मेरे निर्णयो का दौर साथ साथ चलना चाहिए. क्यूं ज़िंदगी मे जो सब हो वो किसी और का दिया ही हो कहीं कुछ तो अपने हिस्से का भी हो. आज दिल और दिमाग़ दोनो से यही चाहती हूँ जो सच था वो शेष रहे, जो झूठ सच का रूप लेकर सामने आया वो खो जाए हमेशा के लिए. मुझे मेरे हिस्से का प्यार, विश्वास, आत्मीयता और अपनापान मिले किसी की दया ना मिले. मेरे हिस्से की धूप मिले, छाँव, पत्तझड़, ग्रीष्म, शीत सब मिले पर उधर की बसंत ऋतू ना मिले. मेरे हिस्से का दर्द, दुख, तकलीफे सब मुझे स्वीकार हैं पर दिखावे की शनिक ख़ुशियाँ मुझसे दूर रहें. मेरे अकेलेपन, मेरी उदासी का सबब जान कोई मेरा संबल ना बने. मेरे अहसास, मेरे भावनाओ पर झूठे होने का इल्ज़ाम ना लगे. मुझे जो मिले वो सिर्फ़ मेरे हिस्से का हो उसमे कभी कोई हिस्सेदार ना बने. जो प्यार, अपनापान, विशवास ज़िंदगी मे है वो किसी के तोड़ने से भी ना टूटे. ज़िंदगी कितने ही कठिन इम्तिहान ले, पर मेरे विश्वास को ठोकर ना लगे. लोग मुझ पर कितनी ही अंगुलियाँ उठाए पर मेरा हौसला ना डगमगाए. कोई मुझे कितना ही सताए, दुख दे पर मेरे प्यार का झरना कभी सूख ना पाए.