बुधवार, अप्रैल 18, 2007

मुझे चाँद चाहिए

चाँद को सभी देखते हैं प्यार करते हैं क्या चाँद भी ऐसे ही लोगों को प्यार करता होगा या उसके पास बहुत सारी चोईसेस होने के कारण वो सिर्फ़ कुछ ही को चुनता होगा. कैसे चाँद के मन और मस्तिशक को समझा जाए समझ नही आता. चाँद अपनी शीतलता से सबको शांति प्रदान करता है अपनी चाँदनी से अंधेरे भरी राहों मे उजाला करता है पर क्या चाँद के लिए सब एक समान नही, क्या चाँद सबको बराबरी से मौक़ा नही देता उसको पाने का? पता नही देता है या नही, पर कोशिश तो करनी ही चाहिए उसे पाने की. राह मैं मुश्किलें आएँगी, शायद बीच बीच मैं दिल दुखेगा भी, लगेगा क्यूं बेकार मेहनत कर रहे हैं पर यहाँ कम से कम एक संभावना तो है चाँद के मिलने की. अगर कोशिश ही नही की तो वो भी रह जाएगी, और मैने तय किया है मुझे चाँद चाहिए.

5 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

you always writes from heart.
i wonder how you are able to manage all this in current world.
keep smiling and moving always in life.

Vikash ने कहा…

मेरी कविता पर आपकी प्रतिक्रिया के मार्फ़त आपके ब्लोग से परिचय हुआ। और यह देखकर एक सुखद आश्चर्य हुआ कि आपकी पांच पसंदीदा किताबों में से तीन मेरी भी लिस्ट मे हैं। और 'मुझे चांद चाहिऐ' तो मैंने ५ बार पढी है। उपन्यास के प्रारम्भ मे कालिगुला के संदर्भ से कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं, जो कि समय समय पर मेरी प्रेरणाश्रोत रही हैं। आपका यह लेख पढ़कर मुझे वो पंक्तियां याद आ गयीं।

"अचानक मुझमे असंभव कि आकांक्षा जागी...! अपना यह संसार बेहद असहनीय है इसलिये मुझे चन्द्रमा या ख़ुशी चाहिऐ। मैं असंभव का संधान कर रह हूँ। देखें तर्क कहॉ ले जाता है। शक्ति अपनी सर्वोच्च सीमा तक, इच्छाशक्ति अपने अनंत छोर तक..... शक्ति तबतक सम्पूर्ण नही हो सकती जबतक काली नियति के समक्ष अपने घुटने टेक ना दिए जाएँ। नहीं, अब वापसी नहीं हो सकती...मुझे आगे बढते ही जाना है। "

सुरभि ने कहा…

कालिगुला की ये पंक्तियाँ मेरी भी प्रेरणाश्रोत रही हैं। जब भी मेरा मन परेशन होता है उलझने लगता है तब यही पंक्तियाँ मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं मुझे याद नही सही से कब पर मैं बहुत छोटी थी जब मैने मुझे चाँद चाहिए पढ़ने से पहले भी इन पंक्तियों को पढ़ा था और तबसे आज तक मेरे मानस मैं ये अंकित हैं और अकेलेपन के दुआर मैं के दौर मे मुझे चलते रहने की, अपनी मंज़िल को पाने की प्रेरणा देती हैं

Manish Kumar ने कहा…

ye kiaab padhne ki meri pehle se hi bahut iksha thi aap logon ke comments ne ise aur badha diya hai. hope i will read it soon.

सुरभि ने कहा…

ज़रूर से पढ़िएगा हिंदी साहित्य के इतिहास मे ईस किताब के साथ ही एक नया काल शुरू होता है मुझे पता नही है आपने 1997 मे एस किताब को जब पुरस्कार मिला था तबकी समीक्षाएं पढ़े या नही ईस उपन्यास को क्रांतिकारी उपन्यास माना जाता है क्यूँकी इससे पहले हिंदी साहित्या मे उच्च स्तर की किताबों की भाषा काफ़ी अलग होती थी. पहली बार हिंदी के किसी उपन्यासकार ने इतनी बोल्ड भाषा का प्रयोग किया है और ये किताब समीक्षको के द्वारा भी सराही गयी राजकमल प्रकाशण से आप पोस्ट से भी मंगवा सकते हैं

 

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