कई बार दिल और दिमाग़ की कशमकश मे इतना उलझ जाते है की कुछ समझ ही नही आता क्या करे. सब कहते है दिल को अपने काबू में रखो वरना वो तो कभी ये माँगेगा कभी वो, दिमाग़ से चलो. पर फिर दिल होता ही
क्यूँ है? और जब चलना दिमाग़ ही है तो दिल और दिमाग़ एक दिशा में क्यूँ नही चलते? क्यूँ किसी के जाने से मन इतना उदास हो जाता है और दिमाग़ एकदम खाली सा लगता है. ज़िंदगी मे किसी के जाने से एक ख़ालीपन आ जाता पर ये ख़ालीपन इतना नही होना चाहिए की हम ज़िंदगी की खूबसूरती ना देख पाए और बाकी अच्छी बातें हमें अपनी और आकर्षित ना कर पाए. एक दिन ऐसा भी होता है जब लगता था किसी का आपके साथ होना ना होना जीवनमरण का प्रश्न है. वो दिन अगर बीत जाए समझ आता है ये पागलपना था और हम खुद पर हँसते हैं और अगर नाबीते तो ईश्वर ही खैर करें. किसी के होने से ज़िंदगी अगर खूबसूरत है तो उसके दूर जाने पर तो ये हमाराउत्तरदायित्व बनता है की हम ज़िंदगी को खूबसूरत रखे अगर उस समय से ज़्यादा नही तो उतना तो कम से कम. वरना ज़िंदगी में किसी का होना ना होना सब बराबर हो जाएगा और मैं इतनी कमजोर तो नही की जो है उसको भी खो दूं :)