मंगलवार, दिसंबर 01, 2009

शिक्षा के बदलते प्रतिमान

कॉलेज शिक्षा विभाग में आये मुझे अभी महिना भर ही हुआ है और मैं अपने आपको इस माहौल के अनुकूल नहीं बना पा रही हूँ. महाविद्यालयों में विद्यार्थी पंजीकरण काफी ऊँचा है पर कहीं कक्षा नहीं लगती और कहीं विद्यार्थी नहीं आते. अध्यापक गण भी विद्यार्थियों को पढ़ने की बजे अपने व्यक्तिगत कार्यों में व्यस्त हैं. इन दिनों महाविद्यालयों में रुकने की अवधि पहले की बनिस्पत २ घन्टे घटा कर ५ घंटे कर दी गयी है और साथ ही छठा वेतनमान भी लागू कर दिया गया है. इसके बावजूद शिक्षक महाविद्यालय में रहने से कतराते हैं और जो एक दो घंटा वहां रहते हैं उनमे भी कक्षाएं न के बराबर ले रहे हैं. मैं समझ नहीं पाती शिक्षक जो समाज का भविष्य निर्माता है वही अगर इस प्रकार की प्रक्रियाओं में लिप्त होंगे तो आने वाले समय में क्या होगा. दूसरी और विद्यार्थी है जिन्होंने छात्रवृति पाने के लिए महाविद्यालय में दाखिला तो करवा लिया है, पर कक्षों में आने की फुर्सत नहीं है. महाविद्यालय के विकास को दर्शाने के लिए कंप्यूटर सेंटर, नए नए कोर्से खोल लिए गए हैं, विद्यार्थियों के सर्वांगीन विकास हेतु विभिन्न कार्यकर्म चलाये जा रहे हैं . पर ये सब भी विद्यार्थियों को महाविद्यालय में लाने में सहायक सिद्ध नहीं हो रहे है.

अभी बहुत कुछ है लिखने के लिए पर सुबह उठ कर मुझे महाविद्यालय जाना है और कक्षा भी लेनी है. मैं उम्मीद करती हूँ की मेरे ब्लॉग को पढने वाले पाठक मुझे कुछ प्रोत्साहित करंगे अपने विचारों के साथ ताकि मैं इस विषय में लिखने की कोशिश को बरक़रार रखु.

नोट
मेरी कक्षा के कुछ विद्यार्थी नियमित रूप से आकर मुझे कृतार्थ कर रहे हैं, मैं उनकी आभारी हूँ की मुझे महाविद्यालय में खाली या इधर उधर चाय पीते हुए अपना समय व्यतीत नहीं करना पड़ता :)

5 टिप्पणियाँ:

M VERMA ने कहा…

वाकई शिक्षा के प्रतिमान बदलते जा रहे है. सुन्दर आलेख

Himanshu Pandey ने कहा…

बिलकुल सही कहा आपने । छठे वेतनमान के लागू हो जाने के बाद मैं तो पढ़ाये गये घंटे के सापेक्ष आय का अनुमान लगाता रहता हूँ ।

अपने दायित्व से इस तरह विमुख होना कैसे हो पाता है ! आपकी स्नेहशीलता और अध्यापन शैली के नाते निश्चय ही विद्यार्थी पढ़ने आते रहेंगे ।

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

सार्थक और सारगर्भित प्रस्तुति ।

मैने अपने ब्लग पर एक कविता लिखी है-रूप जगाए इच्छाएं-समय हो पढ़ें और कमेंट भी दें ।- http://drashokpriyaranjan.blogspot.com

गद्य रचनाओं के लिए भी मेरा ब्लाग है। इस पर एक लेख-घरेलू हिंसा से लहूलुहान महिलाओं को तन और मन लिखा है-समय हो तो पढ़ें और अपनी राय भी दें ।-
http://www.ashokvichar.blogspot.com

Sandeep Bhatt ने कहा…

सुंदर आलेख....

Rakhi Sharma ने कहा…

मैं पूरी तरह से इस से सहमत हूँ,शिक्षा का प्रतिमान आज बदल गया
लेकिन पढ़ के अच्छा लगा की आप जैसे शिक्षक आज भी विद्यार्थियों के प्रति
सजग है.

 

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