तुम एक नदी खूबसूरत सी ,
जिसके मीठे जल से
मेरी आत्मा तृप्त हो गयी है!
रविवार, जुलाई 18, 2010
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मेरा जन्म हुआ इश्क से...मेरा जन्म हुआ इश्क के लिए...इश्क का हर रूप हर रंग जीवन में यहाँ वहां छलका हुआ है...ढूंढ सको तो ढूंढ लो जो रंग चाहिए जीवन इन्द्रधनुषी करने के लिए
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2 टिप्पणियाँ:
सुंदर अभिव्यक्ति ,शुभकामनायें
सुरभि जी
क्या बात है !
तुम एक नदी खूबसूरत सी ,
जिसके मीठे जल से
मेरी आत्मा तृप्त हो गयी है!
मैं जब प्रेम और आसक्ति के गीत ग़ज़ल लिखा करता हूं तो ऐसे ही भाव पिरोता हूं ।
इस कारण लगता है कि यह मेरी अपनी रचना है ।
बहुत सुंदर !
बहुत प्रियंकर !
बधाई …
……………स्वागत …
…………………………शुभकामनाएं …
……………………………………………- राजेन्द्र स्वर्णकार
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