शनिवार, जून 05, 2010

:)


एक दिन चाँद मेरी खिड़की पर आया
और बोला क्यूँ बैठी हो
आकाश में निगाहें लगाये
अब तो मैं आ गया.
मैंने भी हंसकर कहा
तुम तो आ गए पर क्या करूँ
दिल को अभी इशारा नहीं मिला की
वो भी तुझे देखने छत पर आ गया.
अगर मुझे, तुझे देखने पर
उसकी आँखों में झांकने का
अहसास न होता तो
अ चाँद मुझे भी तेरा इंतज़ार न होता!

4 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari ने कहा…

शीर्षक में स्माईली :) तो टिप्पणी में भी :)

M VERMA ने कहा…

अगर मुझे, तुझे देखने पर
उसकी आँखों में झांकने का
अहसास न होता तो
अ चाँद मुझे भी तेरा इंतज़ार न होता!

प्रतिबिम्ब ढूढते हैं हम अपने किसी खास का
आईने में अक्स उभर आया है विश्वास का

abhi ने कहा…

:) वाह क्या बात :)

Shekhar Kumawat ने कहा…

bahut khub



फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई

 

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