
एक दिन चाँद मेरी खिड़की पर आया
और बोला क्यूँ बैठी हो
आकाश में निगाहें लगाये
अब तो मैं आ गया.
मैंने भी हंसकर कहा
तुम तो आ गए पर क्या करूँ
दिल को अभी इशारा नहीं मिला की
वो भी तुझे देखने छत पर आ गया.
अगर मुझे, तुझे देखने पर
उसकी आँखों में झांकने का
अहसास न होता तो
अ चाँद मुझे भी तेरा इंतज़ार न होता!
4 टिप्पणियाँ:
शीर्षक में स्माईली :) तो टिप्पणी में भी :)
अगर मुझे, तुझे देखने पर
उसकी आँखों में झांकने का
अहसास न होता तो
अ चाँद मुझे भी तेरा इंतज़ार न होता!
प्रतिबिम्ब ढूढते हैं हम अपने किसी खास का
आईने में अक्स उभर आया है विश्वास का
:) वाह क्या बात :)
bahut khub
फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
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