ज़िंदगी की किताब पर कुछ नये पन्ने रंगने लगे है कुछ नये से चेहरे आकर लेने लगे है मन मैं नयी उमंगें मचलने लगी हैं ये ख्वाब है या हक़ीकत सपनो की दुनिया सच ना होकर भी जाने क्यूं इतनी क़रीब लगती है लगता है सिर्फ़ एक क़दम का फ़ासला है हाथ करूंगी तो हक़ीकत हो जाएगी. मेरा बात बात पर मुस्कुरा पड़ना, हर पल कोई गीत गुनगुना क्या मेरी ज़िंदगी में किसी के आने की ओर ईशारा करता है ज़िंदगी की किताब मैं जो नयी इबरतें लिखी जा रही है क्या मैं उसे पढ़ सकूंगी? पहली बार मेरा मन किसी के लिए इस तरह बेकाबू हो रहा है जिस और मैं जाना नही चाहती खीचा चला जा रहा है पर फिर भी कहीं कुछ है जो मुझे रोकना चाहता है इस सबसे, मुझे कहता है इतनी रफ़्तार से तो घड़ी के काँटे भी नही बदलते जितनी से तुम उस ओर खीची जा रही हो. उसने ना कुछ कहा-ना कुछ सुना, और कौन जाने उनके मन मैं कुछ है भी या नही, कहीं ये उँची उड़ाने मेरे मन की ही तो नही? अगर है भी तो मेरा मन उड़ना चाहता है पर दिमाग़ कहता है रुक जाओ. दिल और दिमाग़ की इस कशमकश मे, मैं उलझती जा रही हूँ. हर पल फ़ोन की घंटी बजने का इंतज़ार, किसी की चिट्ठि आई है देखने के लिए मेरा बार बार कँपुटर को खोलना क्या मेरे पागलपन का परिचायक नही? क्या करूँ समझ नही आता, ज़िंदगी को यूँ ही चलने दूं या रोक दूं अपने आप.