शुक्रवार, मई 15, 2009
कुछ खुलासा....
मेरे पिछले पोस्ट पर मैंने सभी की अलग अलग प्रतिक्रिया पढ़ी. इस पोस्ट में मैं कुछ बातें स्पष्ट करना चाहूँगी. सर्वप्रथम मेरा आक्रोश पुरुषों के प्रति नहीं है बल्कि उस सामाजिक व्यवस्था, उन लोगो के प्रति है जो की स्त्री को प्रताड़ना का अधिकारी मानते है, उन्हें आगे बढ़ने से, आत्मनिर्भर बनाने से, स्वाभिमान से जीने से रोकते हैं. मैं जानती हूँ किसी की भी सोच एक दिन, एक पल का परिणाम नही है. हमारी जो सोशियल कंडीशनिंग है जब वही सही नहीं होती तो मैं किसी पुरुष या स्त्री पर कैसे अभियोग लगा सकती हूँ? बाहर किसी से लड़ना जितना आसन है अपने आपसे लड़ना उतना ही कठिन, सही गलत की पहचान कर पाने की क्षमता का विकास करना अत्यंत मुश्किल है. मेरे विचार में स्त्री को पुरुष की बराबरी पर लाना है या ऐसे सब शब्द ही गलत हैं. और मैं ऐसी किसी बराबरी में विश्वास नहीं रखती, क्योकि मैं विश्वास करती हूँ की हर मनुज को अपनी क्षमताओ का विकास करने, अपनी इच्छा अनुसार जीवन जीने का अधिकार होना चाहिए . उसे अच्छे बनने की और निरंतर अग्रसर होना चाहिए. ऐसे में बराबरी जैसे शब्द विकास को एक जगह पर ले जाकर रोक देंगे. स्त्री और पुरुष दोनो ही ईश्वर की सुन्दरतम रचना है जिनकी एक दूसरे से कोई प्रतियोगिता नही, बराबरी नही. और इसी प्रकार किसी भी प्रकार का शोषण मानवता का हनन है. दोनो को साथ साथ हाथ मिलाते हुए चलना चाहिए ना की बराबरी करते हुए, प्रतिस्पर्धा करते हुए. वर्तमान परिद्रश्य में, और पिछले कुछ वर्षों में नारी शोषण अत्यंत बढ़ गया है जिसके लिए मुझे लगता है नारी को इस शोषण के प्रति आवाज़ उतनी होनी और बदलाव की शुरुआत स्वयं से ही करनी होगी. परिवर्तन एक या दो दिन में नहीं आएगा, यह एक सतत प्रक्रिया है और हम २-३ संतति के बाद उम्मीद कर सकते हैं कुछ ठोस बदलाव की पर इसकी शुरुआत अभी से ही करनी होगी. उम्मीद की किरण रोशन हो चुकी है और सवेरा अब दूर नही.
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3 टिप्पणियाँ:
स्त्री और पुरुष दोनो ही ईश्वर की सुन्दरतम रचना है जिनकी एक दूसरे से कोई प्रतियोगिता नही, बराबरी नही.
-बहुत उच्च विचार..साधुवाद!!
नारी और पुरुष अपने अपने क्षेत्र में निरंतर प्रगति करे..बस यही भावना हो..बाकी कोई किसी का शोषण करे ..यह गलत है....
दोनो को साथ साथ हाथ मिलाते हुए चलना चाहिए ना की बराबरी करते हुए, प्रतिस्पर्धा करते हुए.
Bilkul sahmat hun aapse.
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