आज अचानक से ही बात चली की लड़कियो को शादी के बाद पति का उपनाम अपने नाम के पीछे लगाना चाहिए. इस बात पर बहस करते करते एसी दिमाग़ में 2 साल पुराना एक किस्सा याद आया जो अंतत अभी एक महीने पहले समाप्त हुआ.
मेरा एम. फिल का दीक्षांत समारोह था. मैं बहुत खुश थी आख़िरकार मुझे TISS से डिग्री मिलने वाली है. अचानक फोन आता है आपको रेजिस्ट्रार साहब बुला रहे हैं. मुझे लगा अचानक ये क्या हुआ ऑफीस पहुचती हूँ तो चटर्जी सर पूछते है आपका नाम क्या है? मैं अपना नाम बताती हूँ वो कहते हाँ पर पीछे क्या है? मैने कहा सर बस इतना ही है एक ही नाम आगे पीछे कुछ नही. अरे ऐसा कैसे हो सकता है हमने तो आज तक नही सुना तुम्हारे बाकी डिग्री सर्टिफिकेट में क्या नाम है? सर वही जो आपको बताया. पर दीक्षांत समारोह के लिए उपनाम भी होना चाहिए ऐसे नही चलेगा. किसी तरह मैं उन्हे समझाती हूँ मुझे सुरभि ही चाहिए और कुछ नही और आप यही नाम रखिए. दीक्षांत समारोह का दिन आता है जब मेरा नाम डिग्री लेने के लिए तो सही बुलाया जाता है पर वार्षिक रिपोर्ट देखते ही मेरा दिमाग़ घूम जाता है. सिर्फ़ 3 लोगो का नाम एम.फिल डिग्री के लिए और मेरा नाम कहीं नही पर कोई सुरभि तिवारी है जिसे डिग्री मिली है. मेरे दोस्त पता करते हैं तो पता चलता है मेरा नाम ही सुरभि की जगह सुरभि तिवारी छापा है. इस नाम से मेरा दूर दूर तक सरोकार नही. अगले दिन मैं रेजिस्ट्रार ऑफीस जाती हूँ और पूछती हूँ मेरा नाम सुरभि तिवारी कैसे छपा मैं खुद आकर आपको बता कर गयी थी. रेजिस्ट्रार साहब बहुत आश्चर्य प्रकट करते है और कहते हैं ये बहुत बड़ी ग़लती है माफीनामे के साथ एक सही प्रति आपके घर पहुच जाएगी. इस बात को 2 साल बीत गये पर कुछ नही हुआ. इस सालों में जितनी बार मैने ऑनलाइन वार्षिक रिपोर्ट देखी दुख हुआ. दुख मेरा नाम ग़लत छापने से ज़्यादा इस बात का था की क्यूँ मेरा नाम बिना उपनाम के नही छापा जा सकता है. किसी ऐसी वैसी जगह नही बल्कि में हो रहा है जहाँ सामाजिक समानता, नारी सशक्तिकरण जैसी बातें की जाती है. समझ नही आ रहा मैं क्या करू क्यूंकी रेजिस्ट्रार ने कुछ किया नही और किसी को मेल करूँ तो कैसा लगेगा. अंतत 2 साल बाद एक दिन सोने से पहले मैने अपना हृदय मजबूत कर, बिना अवमानना की परवाह किए रेजिस्ट्रार साहब को एक चिट्ठी लिखी और डाइरेक्टर साहब को भी उसकी एक प्रति भेजी. सुबह मैं उठ कर अपना मेल बॉक्स झिझकते हुए खोलती हूँ और डाइरेक्टर का मेल दिखता है और एक दूसरा मेल भी. डाइरेक्टर साहब ने मुद्रण विभाग को वार्षिक रिपोर्ट में मेरा नाम सही कर छापने के आदेश दिए थे. दूसरी मेल में वार्षिक रिपोर्ट की सही की गयी प्रति थी जहाँ मेरा नाम सुरभि तो नही हाँ पर मेरे पिता के नाम के साथ सुरभि दयाल लिखा गया.
शुक्रवार, जून 05, 2009
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4 टिप्पणियाँ:
आपने ठीक कहा यह चलन तो है। लेकिन पिता या पति का उपनाम लगाना अनिवार्य है यह तो पहली बार सुन रहा हूँ। अच्छी चर्चा।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
is india aur is samaaj mein kuchh bhi sambhav hai
आजकल तो लोग उपनाम के चक्कर से बचने के लिए बच्चों के नाम ही ऍसे रखते हैं जो दो अलग अलग नामों का संगम हो.. जैसे प्रज्ञा पारमिता, शशांक शेखर वैगेरह वैगेरह
नाम उपनाम के चक्कर से अब लोग बचने भी लगे हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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