गुरुवार, सितंबर 29, 2011

तुम


खोजता था मैं गुम हुए अहसासों को
तुम आयी मुझसे सेंकडो नए जज़्बात भर गयी
किया था जब अलग मेरे वृक्ष ने मुझको
तुम मुझे रोंप, नयी कोपलें खिलने वादा दे गयी
अँधेरे को मान बैठा था मैं नियति अपनी
तुम अपने जीवन का उजियारा मुझे दे गयी
रंग सारे छोड़ मुझे आसमान में जा बसे तब
तुम मुझे इन्दधनुष के सारे रंगों से परिचित करा गयी
नेराश्य ने जब मुझमे घर किया
तुम उम्मीदों के हज़ारों दीप प्रज्वल्लित कर गयी
डरने लगा था हवा के झोंको से भी जब मैं
तुम मुझमे तूफानों में अटल रहने का साहस भर गयी
दुनिया मुझे जब परदे के पीछे रखती थी
तुम मुझमें रंगमच का कलाकार बनने का होंसला भर गयी
मेरे जीवन की रिक्तता को
तुम पूर्णता से भरती रही
घुटती थी जब साँसे मेरी
तुम मुझमे प्राण फूंक गयी !

3 टिप्पणियाँ:

अजय कुमार झा ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां हैं ..सच में तुम का एहसास पिरो कर लिखा आपने ॥आपके ब्लॉग का कलेवर भी मुझे बहुत भाया । शुभकामनाएं आपको

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami ने कहा…

इंद्रधनुष सी रंगबिरंगी खूबसूरत पंक्तियां।

सुरभि ने कहा…

शुक्रिया अजय जी एवं मीनाक्षी जी :)

 

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