रविवार, अक्तूबर 23, 2011

:)


प्यार के दौर में
छूट जायेगा साथ मेरा
अपनी ही आत्मा से
ऐसा पता ना था
जब सोचा फुरसत में बैठकर
ये ब्रह्म ज्ञान पाया
मेरी आत्मा मेरे ही पास रहती
तो वो तुममे एकाकार कैसे होती?

1 टिप्पणियाँ:

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami ने कहा…

बहुत सुंदर दार्शनिक भावयुक्त कविता।

 

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