रविवार, जुलाई 19, 2009

दिल ढूंढता है फिर वही...

लंदन मे रहकर मुझे कई बार अपने देश की बहुत याद आती है. और वो भी ख़ासकर बारिश के दिनो में. यहाँ पहले ही ठंड होती है उपर से ठंडी हवा और बारिश. चलिए बारिश तो बहुत सुहाना और लुभावना मौसम हैं मुझे याद है जब मैं घर पर या हॉस्टिल मे रहती थी बारिश होते ही हम लोग बाहर भीगने को निकल जाते थे. सड़क के किनारे मिलने वाली चाय, गरमागरम पकोडे (भजिया) खाते. कई बार स्कूल, कॉलेज से आते वक़्त साइकल पर भुट्टा खाते हुए घर लौटते थे. हिन्दुस्तान मे कहीं भी सड़क के पास चाय और पकोडे की थडी मिल जाती है और आप आराम से चाय की चुस्कियाँ लेते हुए बारिश की फुहारों का आनंद उठा सकते हैं. पर यहाँ ना तो चाय की दुकान है ना ही वो मज़ा. अगर आपको चाय चाहिए तो स्टारबक्स, कोस्टा-कॉफी जैसी दुकानो मे जाइए और काली चाय पी लीजिए, और अगर आपको दूध वाली चाय पीनी है तो अलग से मिला लीजिए. और पहली चुस्की लेते ही मन करता है बस हो गया चलो यहाँ से. एक अच्छी चाय या कॉफी पीने की चाह मे मैने 30-40 बार अलग अलग दुकानो को आजमाया पर कहीं भी अच्छी तो दूर ठीक चाय-कॉफी तक नही मिली. जब घर पर थे माँ बारिश मे कुछ गरमागरम बना कर खिलाती थी तो सब साथ बैठकर मज़ा करते थे पर यहाँ घर आकर अकेले अपने लिए ना तो कुछ बनाने का मन करता है ना ही कोई साथ में बारिश देखने वाला ही होता है. भले ही यहाँ आप बारिश मे कीचड़ मे गंदे ना हो पर जो मज़ा हिन्दुस्तान मे बारिश मे सड़क के गड्ढो मे छप छप कर चलने मे है, पूरे कपड़े गंदे करके आने में, सड़क किनारे चाय पीने, भुट्टा या भजिया खाने में, घरवालो या दोस्तो के साथ बारिश में भीगने मे, गाने गाने में वो कहीं नही है.

8 टिप्पणियाँ:

विवेक रस्तोगी ने कहा…

बात तो सही है क्योंकि हम जिस परिवेश में पले बड़े होते हैं हमें वही चीजें करना अच्छा लगता है क्योंकि वह हमारे रोम रोम में बस गया होता है, इसी को तो संस्कृति कहते हैं।

खैर हम तो अब भी बारिश में पकौड़े खाने से नहीं चूकते।

निर्मला कपिला ने कहा…

सुरभी जी अपने वतन की मिट्टी मे ही ऐसी कशिश है कि कोई कितना भी चाहे इसे भूल नहीं सकता फिर ज़िन्दगी मे धन दौलत से वो भूख नहीं मिटती जो इन्सान को अपनी खुशी व्यक्त करने के लिये चाहिये होती हैजहां वो हर बन्दिश से आज़ाद हो कर साँस ले सके-- हंस खेल सके --- वैसे भी कहावत है जो सुख छजु के चौबारे वो ना वल्ख ना बुखारे बडिया पोस्ट शुभकामनायें

श्यामल सुमन ने कहा…

इसी बहाने आपने भेजा कुछ संदेश।
माटी पानी संग में प्यारा अपना देश।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

अजय कुमार झा ने कहा…

अले बच्चा ..जब भी घल की इत्ती याद आये ..ऐसे ही चिट्ठियाँ लिखा करो ..हम यहाँ का हाल बताएँगे...हमें भी अपने गाम की बहुते याद आती है जी...का करें ई पापी पेट जो ना कराये...भोरे भोर सेंटिया दी हो आप तो हमको ..खुश ...अरे नहीं खुस रहो...

sanjay vyas ने कहा…

परदेस में 'देश'राग.

admin ने कहा…

Yah subah-subah aapne chaay aur pakode kee yaad dila dee. Baarish ki masti yahan to khoob hai par chaliye udhar to filhaal yaad se hee gujaara karna padega. Par chitton se yah yaad aur khoobsoorat ho gayee hai.

बेनामी ने कहा…

सच है अपने देश की बात ही अलग है.

...

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

sahi likha aapney. aapney desh ki baat hi kuch aur hai.

अच्छा लिखा है आपने । आपके विचार यथार्थ के निकट हैं। शब्दों का सहज प्रयोग भाषा को आकर्षक और विचारों को प्रभावशाली बनाता है।
मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-शिवभक्ति और आस्था का प्रवाह है कांवड़ यात्रा-समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-

http://ashokvichar.blogspot.com

 

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